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पंचम खण्ड | २३४
मार्ग और स्वरूप का अनुसरण करें, स्वयं को योगमय बनायें तथा समाज को योगमय बनायें । तभी हम पूर्ण स्वस्थ, सद्भावपूर्ण, नीरोग, तथा शांत संयमी बन सकेंगे तथा हमारा समाज प्रेममय हो सकेगा । सभी सुखी होंगे, सभी स्वस्थ-नीरोग होंगे, सब एक-दूसरे का कल्याण चाहेंगे, किसी को कोई दुःख नहीं होगा। अाज हमारा दर्द (दुःख) बहुत बढ़ चुका है, इसका उपचार होना अत्यावश्यक है। केवल योग ही इस 'पीर' का निवारण कर सकता है। दुष्यंत कुमार के शब्दों में :
अर्चनार्चन ।
हो गयी है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
जाहिर है, हमारे आज के रेतीले जीवन में योग-गंगा की निर्मल धारा अविरुद्ध प्रवाहित होती रहनी चाहिए।
आवास ७ य २ जवाहरनगर, जयपुर।
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