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________________ पंचम खण्ड | २२४ अर्चनार्चन केश, लोम, नख का अग्र भाग, अन्न का मल (पूरीष), द्रवों (स्वेद-मूत्र) के गुणों को छोड़कर इन्द्रिय सहित शरीर और मन वेदनामों का अधिष्ठान है। योग और मोक्ष में सभी वेदनाओं का नाश हो जाता है। मोक्ष में वेदनाओं की प्रात्यन्तिक निवृत्ति होती है । अत: योग मोक्ष का प्रवर्तक होता है। ___ "योगो मोक्षप्रवर्तकः" महर्षि चरक का यह वाक्य अपने प्राप में विशेष महत्त्व रखता है। इसके अनुसार योग मोक्ष को दिलाने वाला होता है। योगसूत्र में महर्षि पतञ्जलि ने योग का जो लक्षण बतलाया है उसके अनुसार योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः-चित्त (मन) की वत्ति को रोकने का नाम योग है। समाधि अवस्था में जब मन की समस्त वृत्तियों का निरोध हो जाता है तब रज और तम जो मन के दोष हैं, उनका स्वयं ही मन से वियोग अर्थात प्रभाव हो जाता है-इसी अवस्था को योग कहते हैं। इस योगावस्था में मनुष्य की आत्मा पूर्णतः निर्मल और विशिष्ट ज्ञानलोक से प्रकाशमान हो जाती है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जन को इसी प्रकार के योग का उपदेश दिया था समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा। बुद्धचा विशुद्धया युक्तो घृत्यात्मानं नियम्य च ॥ शुद्धासीन विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युवस्य च । विविक्तसेवी लघ्वासी यतवाक्काययानसः॥ ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः। अहंकारं बलं द कामं क्रोधं परिग्रहम् ॥ विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते। ब्रह्मभूतः प्रशान्तात्मा न शोचति न कांक्षति ॥ -भगवद् गीता, १८ _ हे कौन्तेय ! ज्ञान की जो उत्कृष्ट निष्ठा है उसे तू मुझ से समझ । विशुद्ध बुद्धि से युक्त स्वयं को नियन्त्रित करके शब्दादि इन्द्रियों से विषयों का परित्याग कर तथा राग-द्वेष को हटाकर एकांतवासी, मिताहारी, मन-वचन-काय को वश में करके जो नित्य ध्यानयोग में तत्पर रहता हुआ वैराग्य की ओर उन्मुख रहता है वह अहंकार बल, दर्प--मिथ्याभिमान, काम, क्रोध और परिग्रह से मुक्त होकर मोह-ममता रहित शान्त हुआ ब्रह्मपद को पाने का अधिकारी हो जाता है। ब्रह्मभूत हुआ वह प्रशान्तात्मा न तो कोई शोक (दु:ख) करता है और न कुछ कामना करता है, अर्थात् उसके सुख-दुःख, इच्छा, द्वेष आदि का नाश हो जाता है । __ महर्षि चरक के पूर्वोक्त वचन से एक यह बात भी स्पष्ट होती है कि मोक्ष से पूर्व की अवस्था को हो योग कहते हैं और वही योग मोक्ष का साधन है। योग के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है । इस प्रकार मोक्ष और योग ये दोनों भिन्न-भिन्न अवस्थाएं हैं। इसका स्पष्ट संकेत चरक के पूर्वोक्त "योगे मोक्षे च सर्वासां वेदनानामवर्तनम्" इस वाक्य से मिलता है। उनके अनुसार योग और मोक्ष दोनों ही अवस्थाओं में सभी प्रकार की वेदनाओं (दुःखों-रोगों) की प्रात्यन्तिक निवृत्ति हो जाती है। किन्तु योग ही मोक्ष नहीं है, अपितु योग के बाद की अन्तिम अवस्था मोक्ष है। योगावस्था में जो समस्त चित्तवृत्तियों का निरोध अथवा समस्त वेदनाओं का प्रवर्तन (नाश) होता है वह सशरीर अवस्था में होता है। मोक्षवस्था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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