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मसीहीयोग/२१७
तप की व्याख्या भिन्न है। मसीहीधर्म में तप के अन्तर्गत व्रत, पश्चात्ताप, प्रार्थना और भजन पाते हैं।
व्रत के बारे में पुराने नियम और नये नियम दोनों में सामग्री प्राप्त होती है। व्यवस्था के अनुसार केवल प्रायश्चित्त के दिन व्रत रखा जाता था (लव्य व्यवस्था १६) । यहदी चार : उपवास रखते थे अर्थात् चौथे, पांचवें, सातवें और दसवें महीने में (जक्रर्याह ७:३-५; ८: १९)। कभी-कभी सारी जाति के पश्चात्ताप के लिए व्रत प्रचारा जाता था। (१ रामूएल ७:९; २ इतिहास २०:३; पोएल १:१४, २:१५)।
नये नियम में भी उपवास के बारे में सामग्री उपलब्ध होती है। (१) प्रायश्चित्त के दिन व्रत (प्रेरितों के काम २७:९) अठवारे के व्रत (मत्ती ९:१४; मरकुस २:१८; लुका ५:३३; १८:१२; प्रेरितों के काम १०:३०) पवित्रशास्त्र बताता है कि मूसा ने चालीस दिन व्रत रखा था (१ राजा ३७:८) प्रभु यीशुमसीह ने भी चालीस दिन व्रत रखा था (मत्ती ४:२ मरकुस १:१२-१३; लूका ४:२) व्रत इस दृष्टि से रखा जाता है कि हम परमेश्वर का स्मरण करते रहें। व्रत रखना एक अभ्यास है। मत्ती ने व्रत के सम्बन्ध में निम्न विचार प्रेषित किये हैं
"जब तुम उपवास करो तो कपटियों की नाई तुम्हारे मुंह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुम से सच कहता है कि वे अपना प्रतिफल पा चुके । परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल
और मंह धो ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने; इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।" (मत्ती ६:१६-१८)। पश्चात्ताप अर्थात् मन-फिराव
मसीहीजीवन की पहिली सीढ़ी पश्चात्ताप है। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने पश्चात्ताप के लिए उपदेश दिया। प्रभ यीशूमसीह ने भी पश्चात्ताप पर बल दिया। पश्चात्ताप करना यद्यपि इच्छाशक्ति पर निर्भर है किन्तु वह परमेश्वर का दान भी है (प्रेरितों के काम ११: १८:२, तीमुथियुतसु २:२५) पश्चात्ताप करना बुराइयों को छोड़ देने का द्योतक है। उड़ाऊ पुत्र के वर्णन से यह स्पष्ट होता है (लका १५:१७-१८) मसीहीधर्म में पश्चात्ताप अपने पापों का करना है क्योंकि पाप के द्वारा ही मृत्यु है। पौलुस लिखता है-"पाप की मजदूरी मौत है" (रोमियो ५:१२) करिन्थियो मण्डली को कहता है कि मृत्यु का डंक पाप है" (१ करिन्थियो १५:२६) इस कारण पाप से मन फिराना आवश्यक है। मसीहीधर्म का आह्वान है, "मन फिरायो और लौट आयो कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएँ (प्रेरितों के काम ३-१९) पश्चात्ताप करना धार्मिकता का जीवन बिताना है। पश्चात्ताप नैतिकता की ओर अग्रसर करता है। प्रार्थना करना
मसीहीधर्म में प्रार्थना पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है। प्रार्थना सामूहिक भी होती है और व्यक्तिगत भी। प्रार्थना ईश्वर से बातचीत करना है। प्रार्थना वास्तव में मसीहीजीवन में एक परीक्षण है। वह एक शक्ति है। मसीहीजीवन का हृदय है। विश्वास की प्रार्थना जीवन में चमत्कार पैदा करती है। लिखा है-"और यीशु भी बपतिस्मा लेकर प्रार्थना कर रहा था तो आकाश खुल गया” (लूका ३:२१) एक अन्य स्थान पर लूका लिखता
आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जम
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