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________________ मसीही योग → डॉ० एलरिक बारलो शिवाजी जगत् विश्व में चारों ओर योग की चर्चा है। अनेक प्राचार्य एवं गुरु, भारतीय एवं पाश्चात्य, में योग की शिक्षा देकर योग का प्रचार कर रहे हैं। यह योग की शिक्षा हठयोग राजयोग, मन्त्रयोग और लययोग पर आधारित है। हिन्दू संस्कृति में विश्वास किया जाता है कि मनुष्य योग द्वारा मोक्ष प्राप्त कर सकता है भारतीयदर्शन के अनुसार योग का अर्थ जीव का परमात्मा से ईश्वर से जुड़ना है, मिलना है। पवित्र शास्त्र बाइबल यह बताती है कि डेनियल, पहजेकल, यशय्याह, संत पॉल थोर संत जॉन ने ईश्वर का दर्शन पाया था। उनका प्रयास उनका परिश्रम शारीरिक योगाभ्यास के द्वारा नहीं था। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि मसीही योग भारतीय योग से भिन्न प्रकार का है। भारतीय योग में शारीरिक योगाभ्यास पर बल दिया जाता है। अभ्यास के द्वारा चिन्तन, मनन और ध्यान की बात कही जाती है। ध्यान के पश्चात् ही समाधि की क्रिया होती है। यह सारी क्रियाएँ शारीरिक तथा एन्द्रिविक होती हैं पवित्र शास्त्र के अध्ययन से ज्ञात होता है। कि पौलुस इन शारीरिक क्रियाओं के बारे में जानता था धौर इसी कारण वह लिखता है कि " शारीरिक योगाभ्यास के भाव से ज्ञान का लाभ तो है परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इनसे कुछ भी लाभ नहीं होता"" योग से देहसाधना की जाती है, प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण किया जाता है किन्तु प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को जानने के लिए पौलुस स्पष्ट शब्दों में कहता है कि "क्योंकि देह की साधना से कम लाभ होता है, पर भक्ति सब बातों के लिए लाभदायक है।" " मनुष्य योग के माध्यम से सिद्ध बनना चाहता है मसीहीधर्म की शिक्षाएँ भी इस तथ्य को प्रकट करती हैं कि मनुष्य को सिद्ध होना चाहिए जैसा कि कहा भी गया है"इसलिए चाहिए कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा पिता सिद्ध है । " 3 सिद्ध बनने के उपाय भी सुझाये गये हैं । परमेश्वर अब्राहम को कहता है, "मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा ४ पौलुस याकूब की पत्री में कहता है, "धीरज से मनुष्य पूर्ण धोर सिद्ध होता है । "५ थे और जिन्होंने मसीहीधर्म स्वीकार कर योग का प्रभु है। उसने एक ऐसी यौगिक सरल और सहज है । भारतीययोग में योगी मसीहीयोगी को प्रभु नारायण वामन तिलक जो एक भारतीय लिया था, यह मानते थे कि प्रभु यीशु मसीह पद्धति बतलाई है जो सब योग-पद्धतियों में वैराग्य को अपनाकर वैरागी होता है जबकि मसीही योग पद्धति में यीशु मसीह का अनुरागी होना आवश्यक है । मसीहीधर्म शारीरिक योगाभ्यास को नहीं किन्तु प्रात्म योगाभ्यास को उत्तम मानता है जैसा कि लिखा है- "शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता क्योंकि वे उसकी दृष्टि में मुर्खता की बातें हैं और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उनकी जांच प्राध्यात्मिक रीति से होती है ।"" Jain Education International For Private & Personal Use Only आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जम www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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