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________________ सुन्दर नगर में जाम श्रीसत्ता नरेश्वर थे जो बड़े न्यायवान और मिष्ठ थे। उनके पुत्र का नाम श्री जसराज था। इस समृद्ध नगर में बड़े बड़े साहूकार रहते थे और समुद्रतटका बड़ा भारी व्यापार था। नाना प्रकार के फल, मेवे धातु और जवाहरात की आमदनी होती थी। नगरलोक सब सुखी थे। जामसाहबके राज्य में बकरी और शेर एक साथ रहते थे। यहां दंड केवल प्रासादों पर, उन्माद हाथियों में, बंधन वेणीफूल में, चंचलता स्त्री और घोड़ों में, कैदखाना नारी कुचों में, हार शब्द पासों के खेल में, लोभ दीपक में, साल पतंग में, निस्नेहीपना जल में, चोरी मन को चुराने में, शोर नत्यसंगीतादि उत्सवों में, बांकापन बांस में और शंकालज्जा में ही पायी जाती थी। यह प्रधान बंदरगाह था, व्यापारियों का जमघट बना रहता । ८४ ज्ञातियों में प्रधान ओसवंश सूर्य के सदृश है जिसके शृगार स्वरूप राजसी शाहका यश चारों ओर फैला हुआ था। गुणों से भरपूर एक-एक से बढ़कर चौरासी गच्छ हैं। भगवान महावीर की पट्टपरंपरा में गंगाजल की तरह पवित्र अंचलगच्छनायक श्री धर्ममूर्तिसरि नामक यशस्वी प्राचार्य के धर्मधुरंधर श्रावकवर्य राजसी और उसके परिवार का विस्तृत परिचय प्रागे दिया जाता है। महाजनों में पुण्यवान् और श्रीमन्त भोजासाह हए जो नागड़ागोत्रीय होते हुए पहले पारकरनिवासी होने के कारण पारकरा भी कहलाते थे। नवानगर को व्यापार का केन्द्र ज्ञात कर साह भोजाने यहां व्यापार की पेढी खोली। जामसाहब ने उन्हें बुलाकर संस्कृत किया और यहां बस जाने के लिए उत्तम स्थान दिया । सं. १५९६ साल में शुभ मुहूर्त में साह भोजा सपरिवार पाकर यहां रहने लगे। शेठ पुण्यवान् और दाता होने से उनका भोजा नाम सार्थक था। उनको स्रो भोजलदेकी कुक्षि से ५ पुत्ररत्न हए। जिनके नाम (१) खेतसी (२) जइतसी (३) तेजसी (४) जगसी और ५ वां रतनसी ऐसे नाम थे। सं. १६३१-३२ में दुष्काल के समय जइतसी ने दानशालाएं खोलकर सुभिक्ष किया। तीसरे पुत्र तेजसी बड़े पूण्यवान , सुन्दर और तेजस्वी थे । इनके दो स्रियां थीं। प्रथम तेजलदे के चांपसी हए, जिनकी स्त्री चांपलदे की कुक्षि से नेता, धारा और मूलजी नामक तीन पुत्र हए। द्वितीय स्री वइजलदे बड़ी गुणवती, मिष्ठ और पतिपरायणा थी। उसकी कुक्षिसे सं. १६२४ मिति शीर्ष कृष्णा ११ के दिन शुभ लक्षणयुक्त पुत्ररत्न जन्मा । ज्योतिषी लोगों ने जन्मलग्न देखकर कहा कि यह बालक जगत का प्रतिपालक होगा । इसका नाम राजसी दिया गया जो क्रमशः बड़ा होने लगा। उसने पोसाल में मातृकाक्षर, चाणक्यनीति, नामालेखा पढ़ने के अनन्तर धर्मशास्त्र का अभ्यास किया। योग्य वयस्क होने पर सजलदे नामक गुणवती कन्यासे उसका विवाह हा । सजलदे के रामा नामक पुत्र हुमा, जिसके पुत्र व कानबाई हुई और सरीबाई नामक द्वितीय भार्या थी जिसके भागसिंह पुत्र हुआ। राजसी की द्वि. स्त्री सरूपदेवी के लांछा, पांची और धरमी नामक तीन पुत्रियां हुई । तृतीय स्त्री राणबाई भी बड़ी उदार और पतिव्रता थी। तेजसी साह के तृतीय पुत्र नयणसी साह हुए, जिनके मनरंगदे और मोहणदे नामक दो भार्यायें थीं । तेजसीसाहने पुण्यकार्य करते हुए इहलीला समाप्त की। राजसी के अनुज नयणसी के सोमा और कर्मसी नामक दानवीर पुत्रद्वय हुए। सं. १६६० में जैनाचार्य श्री धर्ममतिसरिजी नवानगर पधारे। श्रावकसमुदाय के बीच जामनरेश्वर भी बन्दनार्थ पधारे। सूरिमहाराज ने धर्मोपदेश देते हुए भरत चक्रवर्तीके शत्रुजय संघ निकालकर संघपतिपद रने का वर्णन किया । राजसी साहने शत्र जय का संघ निकालने की इच्छा प्रकट की। सं. १६६५ में આ આર્ય કલયાણગૌતમ સ્મૃતિગ્રંથ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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