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________________ श्री मेघमुनि रचित साह राजसी रासका ऐतिहासिक सार -श्री भंवरलाल नाहटा ...wwwAAAAAAAAAAAAAAAMANN......... श्वेताम्बर जैन विद्वानों से रचित ऐतिहासिक साहित्य बहुत विशाल एवं विविध है। ऐतिहासिक व्यक्तियों के चरित काव्यके रूप में अनेकों संस्कृत में एवं लोकभाषा में भी सैकड़ों की संख्या में उपलब्ध होते हैं । लगभग तीस वर्ष पूर्व 'ऐतिहासिक राससंग्रह' संज्ञक कुछ ग्रंथ निकले थे जिन में हमारा ‘ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह' अंतिम समझिये । विगत पंद्रह वर्षों में ऐसा प्रयत्न विशेष रूप से नहीं हुआ, यद्यपि ऐतिहासिक रास और चरित्र । बहतसे अप्रकाशित हैं, मूलरूप से उनका प्रकाशन तथाविध संग्रहग्रंथ के विक्रय की कमी के कारण असुविधाप्रद होने से हमने अपनी शोध में उपलब्ध ऐसे ग्रंथों का सार प्रकाशित करते रहना ही उचित समझा । इतः पूर्व 'जैन सत्यप्रकाश' में कई कृतियों का सार प्रकाशित कर चुके हैं। अवशेष करते रहने का संकल्प है। उज्जैन के सिन्धिया प्रोरिएण्टल इन्स्टीट्यूट में लगभग दस हजार हस्तलिखित ग्रन्थों का अच्छा संग्रह है । वहां के संग्रहग्रन्थों की अपूर्ण सूचि कई वर्ष पूर्व दो भागों में प्रकाशित हुई थी। उसे मंगाने पर 'साह राजसी रास' मेघमुनि रचित की कृति उक्त संग्रह में होने का विदित हग्रा । प्रथम इस रास का आदि-अंत भाग मंगाकर देखा और फिर प्रतिलिपि प्राप्त करने का कई बार प्रयत्न किया पर नियमानुसार इंस्टीट्यूट से प्रति बाहर नहीं भेजी जाती और वहां बैठकर प्रतिलिपि करने वाले व्यक्ति के न मिलने से हमारा प्रयत्न असफल रहा । संयोगवशगतवर्ष मेरे पितृव्य श्री अगरचंद जी नाहटा के पुत्र भाई धरमचन्द के विवाहोपलक्ष में लश्कर जाना हुआ तो डॉ. बूलचंद जी जैनसे मोतीमहलमें साक्षात्कार हुआ, जो उस प्रान्त के शिक्षाविभाग के सेक्रेटरी हैं। प्रसंगवश सिन्धिया अोरिएण्टल इन्स्टीटयूट की प्रति के संबंध में बात हई और हमने अपनी असफलता के बारे में जिक्र किया तो उन्होंने अविलम्ब उसकी प्रतिलिपि भेजने की व्यवस्था कर देने का कहा। थोड़े दिनों में आपकी कृपा से उसकी प्रतिलिपि प्राप्त हो गई जिसका ऐतिहासिक सार यहां उपस्थित किया जा रहा है। चौबीस तीर्थंकर, गौतमादि १४५२ गणधर, सरस्वती को और गुरुचरणों में नमस्कार करके कवि मेघमुनि राजसी साह के रास का प्रारंभ करते हैं। इस नरपुगवने जिनालय-निर्माण, सप्त क्षेत्र में अर्थव्यय, तीर्थयात्रा, संघपतिपदप्राप्ति आदि कार्यों के साथ साथ सं. १६८७ के महान दुष्काल में दानशाल भारी पुण्यकार्य किया था। भरतक्षेत्र के २५॥ (साढ़े पच्चीस ) आर्य देशों में हालार देश प्रसिद्ध है, जहां के अश्वरत्न प्रसिद्ध होते हैं और श्रीकृष्णका निवासस्थान द्वारामती तीर्थ भी यहीं अवस्थित है। इसी हालार देश के नवानगर नामक १ हालार देशका वर्णन हमारे संग्रहमें संस्कृत श्लोकोंमें है, वैसे ही संस्कृत काव्यमें भी दिया गया है। ક શ્રી આર્ય કહ્યાગૌમસ્મૃતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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