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वीर विहारकी दक्षिण ओोर ११ गणधरोंके चरण हैं वहां पूजा ईसर देहरेके सामने धन्ना - शालिभद्रकी ध्यानस्थ बड़ी प्रतिमानोंगुणशील चैत्य, शालिभद्रका निर्माल्य कूप, रोहरणयाकी गुफा चतुर्विंशति जिनालयके दर्शन किये । अजितनाथ, चन्द्रप्रभु,
की। दूसरे देहरे में मुनिसुव्रतनाथजी की पूजा की। की। कई भूमिगृहों में कई काउसग्गिए स्वामी थे । की पूजा करके तलहटी में उतरे, मिश्रीकी परब दी । आदि स्थान बड़े हर्षोत्साह से देखे । विपुलगिरि पर पार्श्वनाथ और पद्मप्रभके चार मन्दिरोंमें पूजा की । उसके पास ही जंबू, मेघकुमार, खंधक आदि मुनियों के चरण हैं। तीसरे पहाड़ उदयगिरि पर चौमुख मन्दिर के दर्शन किये। फिर रत्नगिरि पर ऋषभदेव और चौबीस जिनके मन्दिरोंको वंदन कर, स्वर्णगिरिके देवविमान सदृश जिनालयकी पूजा की। राजगृही नगरीमें जिनेश्वरके तीन मन्दिरोंकी पूजा की। संघपति कुरपालकी राणी श्रमृतदे और सोनपालकी राणी काश्मीरदे थी सो यहां संघपतिने छठी कड़ाही दी। गांधी वंशके साह जटमल वच्छा हीराने भी सुयश कमाया |
राजगृहसे संघ वड़गाम आया। यहां ऋषभ जिनालय के दर्शन किये। शास्त्रप्रसिद्ध नालंदा पाड़ा यही है। जहां त्रिशलानंदन महावीर प्रभु ने १४ चोमासे किये थे । यहांसे दक्षिणकी तरफ १५०० तापसोंकी केवलज्ञान भूमि है, चार कोनोंके चोतरोंमें २ गौतमपादुका हैं। यहां पूजन कर अनुक्रमसे पटना पहुंचे। सुन्दर बगीचे में डेरा किया साह चांपसीने प्रथम कहाड़ी दी, महिमके सेठ उदयकररणने दूसरी, महाराज कल्याणजीने तीसरी, श्री वच्छ भोजा साहा जटमलने चौथी कड़ाही दी, कपूराके पुत्र पचू सचू साहने पांचवी कड़ाही दी, सहिजादपुर निवासी साह सीचाने छट्ठी, तेजमाल बरढ़ीया ने सातवी, लाहोरी साह सुखमल ने आठवीं कड़ाही दी । संघ वहांसे चला । अनुक्रमसे गोमतीके तट पर पहुंचे, स्नान करके भूदेवको दान दिया । जम्मणपुर आए, डेरा दिया, भूमिगृहकी ४१ जिन प्रतिमानोंका वंदन किया। साह चौथा साह, विमलदास साह रेखाने संघकी भक्ति की । वहांसे मार्ग के चैत्योंको वंदन करते हुए अयोध्या नगर पहुंचे। ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ, और अनन्तनाथ तीर्थंकरों की कल्याणक भूमिमें पांच थूभों का पूजन किया, सातवीं कड़ाही की । अयोध्या से रत्नपुरी आए, धर्मनाथ प्रभुको वंदन किया। इस विशाल संघके साथ कितने ही नामांकित व्यक्ति थे जिनमेंसे थोड़े नाम रासकारने निम्नोक्त दिये हैं ।
संघपति कुरपाल के पुत्र संघराज, चतुर्भुज साह, धनपाल, सुन्दरदास, शूरदास, शिवदास, जेठमल, पदमसी, चम्मासाह, छांगराज, चौधरी दरगू, साह वच्छा हीरा, साह भोजा, राजपाल, सुन्दरदास, साह रेखा, साह श्रीवच्छ, जटमल, ऋषभदास, वर्द्धमान, पचू सचू, कटारु, साह ताराचन्द, मेहता वर्द्धन, सुखा सीचा, सूरदास पैसारी नरसिंह, सोहिल्ला, मेघराज, कल्याण, कालू, थानसिंग, ताराचन्द, मुलदास, हांसा, लीलापति इत्यादि ।
अनुक्रमसे चलते हुए आगरा पहुंचे, सानन्द यात्रा संपन्न कर लौटनेसे सबको अपार हर्ष हुआ । संघपतिने आठवीं कड़ाही की । समस्त साधुयोंको वस्त्रादिसे प्रतिलाभा । याचकों को दो हजार घोड़े और तैंतीस हाथी दान दिये । स्थानीय संघने सुन्दर स्वागत कर संघपतिको मोतियोंसे वधाया । सम्राट जहांगीर सम्मानित संघपतिने गजारूढ होकर नगर में प्रवेश किया ।
संघपतिने सं. १६५७ में शत्रु जयका संघ निकाला, बहुतसी जिनप्रतिमाओं की स्थापना की। बड़े-बड़े जिनालय कराये । सप्तक्षेत्र में द्रव्य व्यय कर चतुविध संघ की भक्ति की । बड़े-बड़े धर्मकार्य किये । सं. १६७० में गिरिराज सम्मेतशिखरकी यात्रा संघ सहित की, जिसके वर्णनस्वरूप यह रास कवि जसकीर्ति मुनि ने बनाकर चार खंडों में पूर्ण किया ।
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શ્રી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમ સ્મૃતિ ગ્રંથ
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