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________________ नुकसान हुआ तो ग्यारह गुना मैं दूंगा।" यह सुनकर संघपतिने मिर्जाको और राजाको वस्त्रालंकार, घोड़े, सोनइया और जहांगीरी रुपये, उत्तम खाद्य पदार्थादि से संतुष्ट किया। वहांसे राजाके साथ संघपति संघ सह प्रयारण कर, पांच घाटी उल्लंघन कर, सकुशल गुम्मानगर पहुंचे। अच्छे स्थान पर संघ ने पड़ाव डाला, और राजा तिलोकचन्द ने बड़ी पाव-भगत की । संघपतिने राणीके लिए अच्छे अच्छे वस्त्राभरण भेजे । गोमा से और भी पैदल सैनिक साथ में ले लिये । यहां से गिरिराजका रास्ता बड़ा विषम है, दोनों ओर पहाड़ और बीच में बीहड़ वन है । नाना प्रकारके फल फूल औषधि आदि के वृक्षों से वन परिपूर्ण है और प्राकृतिक सौंदर्य का निवास है । जंगली पशु पक्षी बहुतायतसे विचरते हैं। नदी का मीठा जल पीते और कड़ाही करते हुए झोंपड़ियों वाले गांवोंमें से होकर खोह को पार किया। १२०० अन्नके पोठिये और घृतके कूड साथमें थे। अन्नसत्र प्रवाहसे चलता था। अनुक्रम से संघपतिने चेतनपुर के पास डेरा दिया। यहां से १ कोश दूरी पर अजितपुर है वहांका राजा पृथ्वीसिंह बड़ा दातार, शूरवीर और प्रतापी है। नगारोंकी चोट सुन पृथ्वीसिंहकी राणीने ऊपर चढ़ देखा तो सेनाकी बहुलतासे व्याकुल हो गई। राजाने संघपति की बात कही और अपने भतीजेको संघपतिके पास भेजा। उसने संघपतिका स्वागत कर अपने राजाके लिए कोल (निमंत्रण) देनेका कहा। संघपतिने सहर्ष वस्त्रादि सह कोल दिया। राजा पृथ्वीसिंह समारोहसे संघपतिसे मिलने पाया। संघपतिने वस्त्रालंकार द्रव्यादिसे राजाको सम्मानित किया। दूसरे दिन अजितपुर आये। एक मुकाम किया। वहांसे मुकन्दपुर आये, गिरिराज को देख कर सब लोग लोगोंके हर्षका पारावार न रहा। सोने चांदीके पुष्पोंसे गिरिराज को बधाया । संघपतिको मनाने के लिए राजा रामदेवका मन्त्री पाया। राजा तिलोकचन्द और राजा पृथ्वीसिंह आगे चलते हुए गिरिराजका मार्ग दिखाते थे। पांच कोश की चढ़ाई तय करने पर संघ गिरिराज पर पहुँचा। अच्छे स्थान में डेरा देकर संघपतिने त्रिकोण कुण्डमें स्नान किया। फिर केशरचन्दनके कटोरे और पुष्पमालादि लेकर थुभकी पूजा की। जिनेश्वरकी पूजा सब टुकों पर करनेके बाद समस्त संघ ने कुअरपाल-सोनपालको तिलक करके संघपति पद दिया। यह शुभ यात्रा वैशाख वदि ११ मंगलवारको सानंद हुई। यहां से दक्षिण दिशिमें ज भकग्राम है जहां भगवान महावीरको केवलज्ञान हुआ था। गिरिराज से नीचे उतर कर तलहटी में डेरा दिया, संघपतिने मिश्रीकी परब की। मुकुदपुर आकर पांचवी कड़ाही दी। वर्षा खूब जोरकी हुई । वहांसे अजितपुर आये। राजा पृथ्वीसिंह ने संघ का अच्छा स्वागत किया, संघपति ने भी वस्त्रालंकारादि उत्तम पदार्थोंसे राजा को संतुष्ट किया। राजा ने कहा-यह देश धन्य है जहां बड़ेबड़े संघपति तीर्थयात्राके हेतु पाते हैं, मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अबसे जो संघ आवेंगे उनसे मैं आधा दान (कर) लूगा। यहांसे चलकर गुम्मा पाए। राजा तिलोकचन्द को, जिसने मार्ग में अच्छी सेवा की थी सोनाचांदीके मुहररुपये वस्त्रालंकार आदि वस्तुएं प्रचुर परिमाण में दीं। सम्मेतशिखरसे राजगृह १२ योजन है, सातवें दिन संघ राजगृह पहुंचा। यहां बाग बगीचे कुए इत्यादि हैं। राजा श्रेणिक का बनाया हुया गढ और चारों ओर गरम पानीके कुंड सुशोभित हैं। समतल भूमिमें डेरा देकर पहले वेभारगिरि पर चढ़े। यहां मुनिसुव्रत स्वामीके ५२ जिनालय मन्दिर हैं, पद्मप्रभु, नेमिनाथ, चन्द्रप्रभु, पार्श्वनाथ ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दन, महावीरप्रभु, विमलनाथ, सुमतिनाथ और सुपार्श्वनाथ स्वामीकी फूलों से पूजा રહી શ્રી આર્ય કkયાણા ગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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