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________________ जिससे अगणित ब्राह्मण और भिखारी एकत्र हो गये। संघपति ने रुपये के बोरे के बोरे दान में दे डाले । वहां से सिंहपुरे गये; यहां श्रेयांस भगवान के तीन कल्याणक हुए हैं। चन्द्रपुरी में, चन्द्रप्रभ स्वामी के ३ कल्याणक की भूमि में चरणों की पूजा की। वहां से वापिस आकर संघपति ने तीसरी कड़ाही की। वहां से मुगल सराय पाये यहां खजूर के वृक्ष बहुलता से हैं। फिर मोहिनीपुर होकर मम्मेरपुर पहुंचे। (संघपति की पुत्रवधू) संघश्री ने कन्या प्रसव की। यहां चार मुकाम किये। फागुण चौमासा करके सहिसराम आये। वहां से गीठीली सराय में वासा किया। फिर सोवनकूला नदी पार कर महिमुदपुर आये, बहिबल में डेरा किया। चारुवरी की सराय होकर पटना पहुंचे सहिजादपुर से पटना दो सौ कोश है, यहां मिर्जा समसत्ती के बाग में डेरा दिया। पटना में श्वेताम्बरों के मन्दिरों में एक ऋषभदेव भगवान का और दूसरा खमणावसही में पार्श्वनाथ भगवान का है। दुगरी के पास स्थलिभद्रस्वामी की पादुका है, सुदर्शन सेठ की पादुकाओं का भी पूजन किया। जेसवाल जैनी साह ने समस्त संघ की भोजनादि द्वारा भक्ति की। दूसरे दिन खण्डेलवाल ज्ञाति के सा. मयणु ने कड़ाही दी। पटने से आगे मार्ग संकीर्ण है इसलिए गाड़ियां यहां छोड़ कर डोलियाँ ले लीं। चार मुकाम करके संघ चला, फतेहपुर में एक मुकाम किया वहां से आधे कोश पर वानरवन देखा । महानदी पार होकर बिहार नगर आये, यहां जिनेश्वर भगवान के ३ मन्दिर थे। रामदेव के मन्त्री ने ग्राकर नमस्कार किया और कार्य पूछा । संघपति ने कहा, "हम गिद्वौर के मार्ग पर पावें यदि कोल (वचन) मंगावो !" मन्त्री ने प्रादमी भेजकर कोल मंगाया। बिहार में एक मुकाम करके पावापुर पहुंचे। भगवान वर्धमान की निर्वाणभूमि पर पीपल वृक्ष के नीचे चौतरे पर प्रभु के चरण-वंदन किए। तीर्थयात्रा करके मुहम्मदपुर में नदी के तट पर डेरा दिया। संघपति ने चौथी कड़ाही दी। वहां से नवादा गये। सादिक मुहम्मद खान का पुत्र मिर्जा दुल्लह आकर संघपति से मिला, उसे पहिरावणी दी। जिनालय के दर्शन करके चले, सबर नगर पहुंचे। रामदेव राजा के मन्त्री ने स्वागत कर अच्छे स्थान में डेरा दिलाया। संघपति ने राजा से मिलकर यात्रा कराने के लिए कहा। राजा ब्राह्मण था, उसने कहा "दो चार दिन में ही आप थक गये ! अापके पहले जो बड़े संघपति आये हैं महीने-महीने यहां रहे हैं।" संघपति उसकी मनोवृत्ति समझ कर पा गए । चार मुकाम करके सिंह गुफा में श्री वर्द्धमान स्वामी को वंदन किया। जाऊ तब तुम मुझे प्रोसवाल समझना । संघपति ने आकर प्रयाण की तैयारी की। राणी ने राजा रामदेव को बहुत फिटकारा, तब उसने संघपति को मनाने के लिये मन्त्री को भेजा । मन्त्री ने बहुतसा अनुनय-विनय किया पर संघपति ने उसे एकदम कोरा जवाब दे दिया। संघपति संघ सहित नवादा पाये, मिरजा अंदुला पाकर मिला। उसने कहा--कोई चिंता नहीं, गुम्मा (गोमा) का राजा तिलोकचन्द होशियार है उसे बुलाता हं! मिरजा ने तत्काल अपना मेवड़ा दूत भेज दिया। राजा तिलोकचन्द मिरजा का पत्र पाकर आह्लादित हुआ और अपने पुरुषों को एकत्र करना प्रारम्भ किया ! राणी ने यह तैयारी देखकर कारण पूछा । आखिर उसने भी यही सलाह दी कि "राजा रामदेव की तरह तुम मूर्खता मत करना, संघपति बड़ा दातार और आत्माभिमानी है, यात्रा कराने के लिए सम्मानपूर्वक ले आना। राजा तिलोकचन्द ससैन्य मिर्जा के पास पहुँचा। मिर्जा ने उसे संघपतिके पास लाकर कहा कि "ये बड़े व्यवहारी हैं, इनके पास हजरतके हाथका फरमान है, इन्हें कोई कष्ट देगा तो हमारा गुनहगार होगा।" राजाने कहा--"कोई चिन्ता न करें, यात्रा कराके नवादा पहुंचा दूंगा। इनके एक दमड़ीको भी हरकत नहीं होगी। यदि અમ શ્રી આર્ય કલ્યાણગૌતમસ્મૃતિ ગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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