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________________ [25]amm महिम, समाणी, सीनवे, सोवनपंथ, सोरठ, बाबरपुर, सिकन्दरा, नारनौल, अलवर, कोट्टरवाड़ा, दिल्ली, तज्जारा, खोहरी, फत्तियाबाद, उज्जैन, मांडवगढ़, रामपुर, रतलाम, बुरहानपुर, बालापुर, जालरणापुर, ग्वालर, अजमेर, चाटसू, ग्राम्बेर, सांगानेर, सोजत, पाली, खैरवा, सादड़ी, कुभलमेर, डीडवाणा, बीकानेर, जयतारण, पीपाड़, मालपुर, सिद्धपुर, सिरोही, बाहडमेर, ब्रह्मावाद, व्याणइ, सिकन्दराबाद, पिरोजपुर, फर्तपुर, पादरा, पीरोजाबाद इत्यादि । www सब जगह निमंत्रण भेजे गए, महाजनों को घर-घर में दिगम्बर यतियों को भी प्रणाम करके संघ में सम्मिलित होने की याचकादि द्वारा जय जयकार के साथ गजारूढ़ होकर प्रयाण किया। स्थान-स्थान का संघ ग्राकर मिलने लगा, १५ दिन का मुकाम हुआ, श्वे० साधु साध्वी महात्मादि ७५, यति व पंडित (दि. ) ४६, सब १२१ दर्शनी, ३०० भोजक, चारण, भाट, गान्धर्व, ब्राह्मण, ब्राह्मणी, जोगी, संन्यासी, दरवेश आदि अगणित थे । २१ धर्मार्थ गाडे में याचक लोग मनोवाञ्छित पाते थे, किसी को कोई चीज की कमी नहीं थी । १५ दिन ठहर कर प्रभु पार्श्वनाथ की पूजा कर संघ चला। जहां-जहां ओसवाल और श्रीमालादि के घर थे वहां थाल १, खांड सेर २ व श्रीफल से लाहरण की। संघ की रक्षा के हेतु ५०० सुभट साथ थे । प्रथम प्रयाण भाणासराय में हुआ । ३ मुकाम किए, वहां से महम्मदपुर होते हुए पीरोजपुर प्राए, ६ मुकाम किये। मुनिसुव्रत भगवान की पूजा करके लाहणादि करके चन्दनवाड़ि गये । वहां स्फटिकमय चन्द्रप्रभु की प्रतिमा के दर्शन किये । वहां से पीरोजाबाद आये, फिर खरी प्रयाण किया, नौका में बैठकर यमुना नदी उतर के सौरीपुर पहुंचे ! नेमिनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक तीर्थ का वंदनपूजन कर फिर से खरी आाये। यहां ५२ जिनालय को वंदन किया, संघपति ने प्रथम कड़ाही (जीमनवार) की । सरस के दिगम्बर देहरे का वंदन कर अहीर सराय में डेरा दिया। वहां से इटावा, बाबरपुर, फुलकंइताल, भोगितीपुर, सांखिसराहि, कोरट्टइ, बिदली सराय में डेरा करते हुए १ दिन फतेहपुर ठहरे । हाथियागाम, कडइ, सहिजादपुर आए, श्रीसंघ हर्षित हुआ । सहिजादपुर से महुआ आए, वहां सती मृगावती ने भगवान महावीर देव से दीक्षा ली थी । वत्सदेश की कौशाम्बी नगरी में पद्मप्रभु के तीन कल्याणक हुए हैं, वीरप्रभु ने छम्मासी का पारणा चन्दनबाला के हाथ से यहीं किया था । संघपति ने संघ सहित प्रभु की चरणपादुकाओं का वंदन किया, अनाथी मुनि भी यहां के थे । एक कोस दूर धन्ना का ताल है, वहां से वापिस सहिजादपुर श्राये, एक मुकाम करके दूसरी कड़ाही की । वहां से फतेहपुर होकर प्रयाग आये, यहां केवलज्ञान हुआ था । कहते हैं कि ऋषभ प्रभु का केवलज्ञान का स्थान पुरमिताल भी प्रभु के चरणों की पूजा की, यहां दिगम्बरों के ३ मन्दिर हैं जहां पार्श्वनाथादि प्रभु के पर सीसइ ऊँचे स्थान पर डेरा दिया, वहां से खंडिया सराय, जगदीश सराय, बनारस पहुंचे । निकापुत्र को गंगा उतरते यति महात्माओं को शालाओं में और दहेरे के विनति की। मुहूर्त्त के दिन वार्जित्र बजते हुए नौका में बैठकर यमुना पार डेरा दिया। यहां Jain Education International बनारस में पार्श्व, सुपार्श्व तीर्थंकरों के कल्याणक हुए हैं । विश्वनाथ के मन्दिर के पास ५ प्रतिमाएं ऋषभदेव, नेमिनाथ व पार्श्वप्रभु की हैं । अन्नपूर्णा के पास पार्श्वप्रभु की प्रतिमा है, खमरणावसही में बहुत सी प्रतिमाएं हैं जहां संघ ने पूजनादि किया। पार्श्वप्रभु की रक्त वर्ण प्रतिमा ऋषभ, पार्श्व, चन्दप्रभ व वर्धमान प्रभु की चौमुख प्रतिमानों का कुसुममालादि से अर्चन कर श्री सुपार्श्वप्रभु की कल्याणक भूमि भद्दिलपुर ( ? भदैनी घाट) में प्रभु की पूजा की। नौका से गंगा पार होकर गंगा तट पर डेरा दिया । संघपति ने नगर में पडह बजाया શ્રી આર્ય કલ્યાણૌતમ સ્મૃતિગ્રંથ For Private & Personal Use Only यही है । प्रक्षयबड़ के नीचे दर्शन किए। गंगा के तट कनक सराय, होते हुए www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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