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ब्राह्मस्फुटसिद्धांत: सज्जनगणितगोल वित्प्रत्यै । त्रिशद् वर्षेण कृतो जिष्णुसुत ब्रह्मगुप्तेन ॥
( ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त, श्रध्याय २४)
चीनी यात्री हुएनसांग वि. सं. ६९७ के लगभग में इस प्रदेश में श्राया होना जान पड़ता है । हुएनसांग ने अपनी यात्रा विवरण की पुस्तक सि-यु-कि में मालवे के बाद क्रमशः प्रचिल, कच्छ, वलभी, आनंदपुर, सौराष्ट्र ( सोरठ) और गुर्जर (गुजरात) देशों का वर्णन किया है। गुर्जरदेश के बारे में वह लिखता है कि वल्लभीदेश से करीब ३०० मील उत्तर जाने पर गुर्जर राज्य में पहुंचते हैं । यह राज्य अनुमानतः ८३३ मील के घेरे में है । इस देश की राजधानी भीनमाल है जो करीब ५ मील के घेरे में आबाद है । जमीन की पैदावार एवं लोगों की रीतभात सोरठदेश के लोगों के जैसी है । आबादी घनी है एवं यहां के लोग धनाढ्य और संपन्न हैं । वे बहुधा नास्तिक हैं । यहाँ पर अनेकों दहाई - देवमन्दिर हैं । राजा क्षत्रियजातिका है । यहां पर यह बात विशेष महत्त्वकी है कि हुएनसांगने भीनमाल के लोगोंको नास्तिक बताया है। इसका कारण केवल यही होना चाहिए कि भीनमालमें बौद्धधर्म के माननेवाले कोई नहीं थे । अन्यथा वहां पर उस कालमें अनेकों देवमन्दिर होना भी हुएनसांगने बताया है । अर्थात् लोग वैदिकमतके या जैनमतके अनुयायी होंगे । हुएनसांगने अपने यात्रावर्णनमें लिखा है कि भीनमालका राजा २० वर्षका युवान है एवं वह बुद्धिमान और पराक्रमी है; वह बुद्धिमानों का बड़ा श्रादर करता है ।
राजा व्याघ्रमुख (वर्मलात) का प्रधानमन्त्री सुप्रभदेव ब्राह्मण था । सुप्रभदेव कवि माघका पितामह था । प्राचीनकाल में भारत के विद्वान निरभिमानी एवं निःस्वार्थी होते थे । इस लिए बहुधा उनके ग्रन्थोंमें उनके नाम, स्थान व काल वे नहीं लिखते थे । अपने जीवनका परिचय अपनी ही कृतिमें देना वे आडम्बर समझते थे । इसलिए प्राचीन इतिहासकी कड़ी ग्रन्थों के आधार पर ढूंढना बड़ा कठिन कार्य है । कवि माघ संस्कृत भाषाके श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं । ऐसी प्रसिद्धि चली श्राती है कि कालिदासके ग्रन्थोंमें उपमा, भारविके किरातार्जुनीय में अर्थ गौरव, और दंडीके ग्रन्थोंमें पदलालित्यकी विशेषता है किन्तु माघके शिशुपालवधमें इन तीनों गुणोंका समावेश है । माघ किस काल में हुए थे यह उनके ग्रन्थ शिशुपालवधसे ज्ञात नहीं होता। किंतु कविने उक्त ग्रन्थके अन्त में अपने देशवंशका परिचय दिया है ।
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सर्वाधिकारी सुकृताधिकारः श्रीवर्मलाख्यस्य बभूव राज्ञः असक्तहृष्टिविरजाः सदैव देवोऽपरः सुप्रभदेवनामा ॥१॥ काले मितं तथ्यमुदर्कपथ्यं तथागतस्येव जनः सचेताः विनानुरोधात्स्वहितेच्छयैव महीपतिर्यस्य वचश्चकार ॥२॥ तस्याभवद्दत्तक इत्युदात्तः क्षमी मृदुर्धर्मपरस्तनूजः यं वीक्ष्य वैयासमजातशत्रोर्वचोगुणग्राहि जनैः प्रतीये || ३ || सर्वेण सर्वाश्रय इत्यनिन्द्यमानन्दभाजा जनितं जनेन यश्च द्वितीयं स्वयमद्वितीयो मुख्यः सतां गौणमवाप नाम ॥४॥ श्रीशब्द रम्यकृत- सर्ग - समाप्तिलक्ष्म लक्ष्मीपतेश्चरितकीर्तनमात्रचारु ।
तस्यात्मजः सुकविकीर्तिदुराशयादः काव्यं व्यधात शिशुपालवधाभिधानम् ॥ ५ ॥ ( शिशुपालवधकाव्य के अंतका कविवंशवर्णन )
ચમચી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમ સ્મૃતિ
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