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________________ 'भीनमाल' जैन इतिहास के पृष्ठों पर -श्री घेवरचंदजी माणेकचंदजी राजस्थान के दक्षिण भाग में स्थित जालोर जिले का उपजिला मुख्यालय भीनभाल अपनी स्वणिम पृष्ठभूमि रखता है। यह नगर चारों युगों में भिन्न-भिन्न नाम से सम्बोधित किया गया है। सतयुग का श्रीमाल, त्रेता का रत्नमाल, द्वापर का पुष्पमाल एवं वर्तमान में कलियुग का भिन्नमाल (भीनमाल) अपने अन्तस्थल में भारत का गहरा इतिहास संग्रहीत किये हुए है। जैन एवं जैनेतर सभी विद्वान् साहित्यकार, महान तपस्वी साधु एवं धनाढय वणिकवर्ग इस नगर में हो चुके हैं। इनकी यशोगाथाओं से सम्पूर्ण भारत का इतिहास ज्योतिर्मय हो उसी स्वरिणम इतिहास की एक संक्षिप्त झाँकी इन पृष्ठों पर देने का प्रयास किया गया है। _ वि. सं. २०२ में भीनमाल नगर पर सोलंकी राजपूतवंश का राजा अजीतसिंह राज्य करता था। उस समय मुगल बादशाह मीर ममौचा ने धन लूटने के लोभ से भीनमाल पर आक्रमण किया । भयंकर लड़ाई में लाखों प्राणों की आहुति हई। राजा अजीतसिंह भी उस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। म्लेच्छों ने भीनमाल को बुरी तरह लूटा । देवस्थानों पर संग्रहित स्वर्ण आभूषण एवं स्वर्ण की मूर्तियाँ लूट लीं। यहाँ के घर उजाड़ दिये एवं अथाह धन एकत्र कर अपने वतन ले गया। परन्तु यहाँ की संस्कृति समाप्त नहीं हुई। यह नगर पुनः आबाद हुया । यह क्रम करीब ३०० वर्ष तक चलता रहा। उन दिनों में भीनमाल में लगभग ३१००० ब्राहारण परिवार रहते थे। वि. सं. ५०३ में भीनमाल का राजा सिंह हा है। राजा सिंह के कोई सन्तान नहीं थी इसलिए उसने सन्तान-प्राप्ति के हेतु अपनी गोत्रजा खीमजादेवी की आराधना की एवं सात दिन तक बिना अन्न जल उपवास किया। जिस पर देवी ने प्रकट होकर राजा को कहा कि तुम्हारे भाग्य में सन्तानप्राप्ति का योग नहीं है फिर भी तू जयणा देवी (खीमजा देवी की बहन) की आराधना कर वह तुझे दत्तकपुत्र ला देगी । पौराणिक कथानुसार राजा सिंह ने जयणा देवी की आराधना की। जिस पर देवी ने राजा सिंह को अवन्ती नगरीके राजा मोहल का तुरन्त जन्मा हुया पुत्र लाकर दत्तक सौंपा एवं उसको अपने ही पुत्र समान पालन पोषण करने की प्राज्ञा दी। उस पुत्रकी प्राप्ति जयणा देवी के द्वारा होने के कारण उसका नाम जयणकुमार रखा गया। वि. सं. ५२७ में जयरणकुमार भीनमाल के सिंहासन का अधिपति हा। इस काल में भिन्नमाल नगरकी पुनः महान उन्नति हुई । वि. सं.६८५ में यहां पर श्री ब्रह्मगुप्त नामक महान् ज्योतिषविज्ञ हुए हैं। इनको भिन्नमालाचार्य भी कहते थे। श्री ब्रह्मगुप्त द्वारा लिखित ब्राह्मण स्फुट (ब्रह्मसिद्धान्त) में उस कालका भीनमालका राजा चापवंशीय व्याघ्रमुख (वामलात) बताया है। श्रीचापवंशतिलके श्रीव्याघ्रमुखे नपे शकनुपाणाम् । पंचाशत्संयुक्त वर्षशतैः पंचभिरतीतः ॥ ચી શ્રી આર્ય કથાકાતમઋતિગ્રંથ કહE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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