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मेराऊ, तलवाणा, मोटी खावड़ी, दलतुगी, दाता आदि स्थानों पर बने जैन देरासरों में युगप्रधान दादा साहब प्राचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब की प्रतिमानों को प्रतिष्ठित करवाया।
मुनि महाराज श्रीगौतमसागरजी महाराज की धार्मिक गतिविधियों एवं विधिपक्ष (अचलगच्छ) एकता के कारण आपको 'अचलगच्छाधिपति' से जनसाधारण सम्बोधित किया करते थे। मन्दिरों की प्रतिष्ठा, जीर्णोद्धार, नव निर्माण करवाने वाले मुनिवर्य श्री गौतमसागरजी महाराज साहब को चतुविध संघ ने प्राचार्य पद देने का अतिप्राग्रह किया लेकिन आपश्री ने उसे स्वीकार नहीं किया। वि. सं. २००८ के माघ महीने में रामाणिग्रा (कच्छ) जिनालय के स्वर्ण अवसर पर जय-जयकार के नारों में असंख्य जनसमुदाय ने एक स्वर से आपश्री के प्रति गहरी श्रद्धा भरी आस्था प्रकट करते हुए प्राचार्य गौतमसागरसूरीश्वरजी महाराज, अचलगच्छाधिपात प्राचार्यश्री गौतमसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब, दादा श्री गौतमसागरसूरीश्वरजी महाराज आदि जयघोष के नारे लगाकर उद्घोषणा की।
आपकी त्याग और तपस्या वास्तव में ही अनूठी थी। कई बार अठाई का तप और वर्षीतप कर अापने आत्मकल्याण करने का मार्ग अपनाया। आपकी प्रेरणा से साहित्य एवं पुरातत्व सर्जन के लिये जामनगर, भुज, मांडवी आदि स्थानों पर हस्तलिखित एवं छपे ग्रन्थों का बड़ा संग्रहालय स्थापित हुअा। जामनगर में प्रापकी प्रेरणा से श्री आर्य रक्षितपुस्तकोद्धार संस्था की स्थापना भी हुई जिसके माध्यम से अनेकों पुस्तकों का प्रकाशन किया गया।
त्यागी और तपस्वी राजस्थानरत्न दादाश्री गौतमसागरसरिजी महाराज साहब ने भारत के अनेकों तीर्थों की सद्भावना यात्रा कर लाभ उठाया। साथ ही साथ इन तीर्थों के उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुजरात सौराष्ट्र के पालीतणा, शंखेश्वर पार्श्वनाथ, तालध्वजगिरी, कच्छपंचतीर्थी, भद्र सर, घृतकलोल पार्श्वनाथ, भोयाणी, तारंगाजी, गिरनार आदि तीर्थों की कई बार यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त किया। राजस्थान की वीर भूमि में आपश्री ने वि. सं. १९५७ एवं १९६५ में पधार कर पाबू, नांदिया, लोटाणा, बामनवारी, सिरोही, कोरटा, राणकपुर, मुछाला महावीर, नाडोल, नाडलाई, वरकाना, केसरियाजी, उदयपुर, देलवाड़ा आदि अनेकों जैन तीर्थों की यात्रा की।
तीर्थोद्धारक, धर्मप्रचारक, मानवकल्याणकारी, त्यागी एवं तपस्वी, संगठन शक्ति के प्रणेता, विचारों के दृढ़, अचलगच्छाधिपति, कच्छ हालार देशोद्धारक, राजस्थान के पुरुषरत्न, ज्ञानपुंज दादाश्री गौतमसागरसूरीश्वरजी महाराज का वि. सं. २००९ वैशाख सूदी तेरस की पिछली रात को कच्छ भुज में देवलोक हो गया। अाज यद्यपि दादाश्री गौतमसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आप द्वारा जैन जगत में अचलगच्छ (विधिपक्ष) को जो ज्ञान प्रदान किया वह आज भी अचलगच्छाधिपति, प्राचार्य श्री गुणसागरसरीश्वरजी महाराज साहब की आज्ञा में विचरण करता हुआ सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, अचौर्य के प्रचार के साथ-साथ त्याग एवं तपस्या में तल्लीन हैं। दादाश्री गौतससागरसूरीश्वरजी महाराज साहब द्वारा अचलगच्छ साधु साध्वी के पौधे को पनपाने में प्राचार्य श्री गुणसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब अधिक परिश्रमी बने हुए हैं। इस समय आपकी आज्ञा में करीबन १६ साधु एवं १२५ साध्वियां विचरण कर "अहिंसा परमो धर्म" का देश के कोने-कोने में प्रचार प्रसार करने में कटिबद्ध हैं।
કહી કા શ્રી આર્ય કયાાગૉduસ્મૃતિગ્રંથ
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