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________________ [२०] mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmIIIIIIIIIIIIIIImwam IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIWRILLIARI नन्दुरबार निवासी प्राग्वाट भीमाशाह के पुत्र डूगरशाह ने शत्रुञ्जय, रैवतगिरी, अर्बुदाचल और जीरापल्ली की यात्रा की थी। मीरपुर मन्दिर के लेखों के अनुसार सं. १५५६ में खंभातवासी वीसा ओसवाल बाई शिवा ने अपने पति के श्रेयार्थ जीरावल तीर्थ में दो गोखले बनवाये थे। यह बाई यात्रार्थ यहाँ पाई थी। सं. १५५६ में ही प्राग्वाट संघवी रत्नपाल की भार्या कर्माबाई ने यहां की यात्रा की थी एवं उदयसागरसूरि के उपदेश से यहां एक देहरी बनवाई थी। ( यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन भाग-१, पृष्ठ १२०-१२३ ) वि. सं. १५५९ में पाटन के पर्वतशाह और डगरशाह नाम के भाइयों ने जीरावल अर्बुदाचल का संघ निकाला था। विक्रम की सोलहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में प्राचार्य सुमतिसुन्दरसूरि के उपदेश से मांडवगढ़ से एक संघ निकाला था। यह संघ जीरावल आया था। (सोमचारित्रगणि गुरुगुरगरत्नाकर काव्य ) सारंगपुर के निवासी जयसिंह शाह आगरा के संघवी रत्नशाह ने अट्ठासी संघों के साथ आबू और जीरावल की यात्रा की थी। (सोमचारित्रगणि गुरुगुण्ण रत्नाकर काव्य ) सं. १७४६ में शीलविजयजी की तीर्थमाला में ओसवाल सूरा व रत्ना दो भाइयों का उल्लेख पाता है। उनके वंशज धनजी, पनजी व मनजी ने तीन लाख रुपया खर्च करके एक संघ निकाला था जो जीरावल पाया था। सं. १७५० में सौभाग्यविजय विरचित तीर्थमाला में जीरावल का उल्लेख है। सं. १७५५ में ज्ञानविमलसूरि द्वारा लिखित तीर्थमाला में सूरिपुर से श्रावक सामाजी द्वारा निकाले गये संघ का वर्णन है। वि. सं. १८९१ में प्राषाढ़ सुदी ५ के दिन जैसलमेर के जिनमहेन्द्रसरि के उपदेश से सेठ गुमानचन्दजी बाफना के पांच पूत्रों ने तेईस लाख रुपये खर्च कर श्री सिद्धाचल का संघ निकाला था। इस संघ ने ब्राह्मणवाडा. पाबू, जीरावला, तारंगा, शंखेश्वर, पंचासर एवं गिरनार की यात्रा की थी। इस सम्बन्ध का वि. सं. १८९६ का लेख जैसलमेर के पास अमर सागर मन्दिर में विद्यमान है। इसके अतिरिक्त १९ वीं और २० वीं सदी में निरन्तर कितने ही संघ निकले जिनकी सूची देना यहां सम्भव नहीं है। २० वीं सदी में तो यातायात का अच्छा प्रबन्ध होने के कारण प्रतिवर्ष पचासों संघ इस तीर्थ में आते रहते हैं जिनका उल्लेख करना मात्र पुस्तक का कलेवर बढ़ाना होगा। इस तीर्थ पर बड़े बड़े प्राचार्य चातुर्मास के लिये पधारते थे एवं तीर्थ की प्रभावना में वृद्धि करते थे। अंचलगच्छीय श्री मेरुतुङ्गसूरिजी महाराज ने यहां अपने १५२ शिष्यों के साथ चातुर्मास किया था। आगमगच्छीय श्री हेमरत्नसूरिजी ने अपने ७५ शिष्यों के साथ इस तीर्थ की पवित्र भूमि पर चातुर्मास किया था। इस गच्छ के श्री देवरत्नसूरिजी ने अपने ४८ शिष्यों सहित इस तीर्थ भूमि पर चातुर्मास किया था। उपकेशगच्छीय श्री देवगुप्तसूरिजी महाराज ने अपने ११३ शिष्यों सहित, कक्कसरिजी ने अपने ७१ शिष्यों सहित एवं वाचनाचार्य श्री कपूरप्रियगरिण ने अपने २८ शिष्यों के साथ अलग अलग समय पर यहां चातुर्मास किये थे। 2અમ શ્રી આર્ય ક યાણ ગૌતમસ્મૃતિગ્રંથો છે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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