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________________ MAITHILIAMum I IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIm/१९। वि. सं. १४७५ में तपागच्छीय जैनाचार्य श्री हेमन्तसरिजी महाराज के साथ संघपति मनोरथ ने एक विशाल तीर्थ यात्रा का आयोजन किया। वि. सं. १४८३ में वैशाख सुदी १३ गुरुवार के दिन अंचलगच्छ के प्राचार्य मेरुतुङ्गसूरि के पट्टधर जयकीतिसरि के उपदेश से पाटन निवासी प्रोसवाल जातीय मीठडिया गोत्रीय लोगों ने इस तीर्थ में पांच देहरियों का निर्माण करवाया था। -(पूर्णचन्द्र नाहर, जैन लेख संग्रह खंड-१ लेख ९७३) वि. सं. १४८३ में ही भाद्रपद वदि ७ गुरुवार के दिन तपागच्छीय प्राचार्य भुवनसुन्दरसूरि के प्राचार्यत्व में संघ निकालने वाले कल्वरगा नगर निवासी प्रोसवाल कोठारी गृहस्थों ने इस तीर्थ में तीन देहरियों का निर्माण करवाया था। --(पूर्णचन्द्र नाहर, जैन लेख संग्रह खंड-१ लेख ९७४-९७६) मेवाड़ के राणा मोकल के मन्त्री रामदेव की भार्या मेलादेवी ने चतुर्विध संघ के साथ शत्रुञ्जय, जीरापल्ली और फलौदी तीर्थों की यात्रा की थी। -(संदेह दोलावली वृत्ति सं. १४८६) खंभात के श्रीमाल वंशीय संघवी वरसिंह के पुत्र धनराज ने वि. सं. १४८९ में चैत्र वदि १० शनिवार के दिन रामचन्द्रसूरि के साथ संघ समेत इस तीर्थ की यात्रा की थी। "रस-वसु-पूर्व मिताब्देx x श्री जीरपल्लिनाथमबुदतीर्थ तथा नमस्कुरुते ।" (अबूंद-प्राचीन जैन लेख संदोह ले. ३०३) वि. सं १४९१ में खरतरगच्छीय वाचक श्री भव्यराजगणि के साथ अजवासा सेठिया ने विशाल जन समुदाय के साथ संघ यात्रा का आयोजन किया । विक्रम की १५वीं सदी में संघवी कोचर ने इस तीर्थ की यात्रा की थी। इनके वंशीयों के वि. सं. १५८३ के शिलालेख जैसलमेर के मन्दिर में विद्यमान हैं। वि. सं. १५०१ में चित्रवालगच्छीय जैनाचार्य के साथ प्राग्वाट श्रेष्ठीवर्य पूनासा ने ३००० पादमियों के संघ को लेकर जीरावल तीर्थ की यात्रा की थी। खरतगरच्छ के नायक श्री जिनकुशलसूरि के प्रशिष्य क्षेमकीति वाचनाचार्य ने विक्रम की १४ वीं शताब्दी में जीरापल्ली पार्श्वनाथ की उपासना की थी। संवत १५२५ में अहमदाबाद के संघवी गदराज डुगरशाह एवं संड ने जीरापल्ली पार्श्वनाथ की सामूहिक यात्रा की थी। इस यात्रा में सात सौ बैलगाड़ियाँ थीं और गाते बजाते आबू होकर जीरावल पहुँचे थे। उनका स्वागत सिरोही के महाराव लाखाजी ने किया था। इनमें से गदाशाह ने १२० मन पीतल की ऋषभदेव भगवान् की मूर्ति पाबू के भीम विहार मन्दिर में प्रतिष्ठित करवाई थी। -( गुरु गुण रत्नाकर काव्य सर्ग-३ ) वि. सं. १५३६ में तपागच्छीय लक्ष्मीसागरसूरिजी की निश्रा में श्रेष्ठीवर्य करमासा ने इस पवित्र तीर्थ की यात्रा को थी। इन लक्ष्मीसागरजी ने जीरावलापार्श्वनाथ स्तोत्र की भी रचना की है। અમ શ્રી આર્ય કઠાણા ગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ, કઈ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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