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विक्रम की चौथी सदी में (लगभग ३९५ वि. सं.) जैनाचार्य श्री मेरूसूरीश्वरजी महाराज एक विशाल संघ को लेकर इस तीर्थ में पधारे थे।
संवत् ८३४ के आसपास जैनाचार्य श्री उद्योतनसरिजी ने १७ हजार आदमियों के संघ के साथ इस तीर्थ की यात्रा की थी। इस संघ के संघपति बडली नगर निवासी लखमरण सा थे। ये उद्योतनसरि तत्वाचार्य के शिष्य थे। इन्होंने वि. सं. ८३५ में जालोर में कुवलयमाला नाम की एक प्राकृत कथा की रचना की थी।
विक्रमी संवत् १०३३ में तेतली नगर निवासी सेठ हरदासजी ने एक बड़ा संघ निकाला था। इस संघ के साथ जैनाचार्य श्री सहजानन्दसरीश्वरजी महाराज थे।
विक्रमी संवत ११८८ में जैनाचार्य श्रामदेवसरिजी की अध्यक्षता में जाल्हा श्रेष्ठी ने एक बहत बड़े संघ के साथ इस तीर्थ की यात्रा की।
विक्रमी संवत १३९३ में प्राग्वाट वंशीय भीला श्रेष्ठी ने राहेड नगर से एक बड़ा संघ निकाला जिसमें जैनाचार्य श्री कक्कसरिजी सम्मिलित हुए। इन कक्कसूरिजी ने वि. सं. १३७८ में प्राबू के विमलवसही मन्दिर में आदिनाथ के बिम्ब की प्रतिष्ठा की थी। इन्होंने बालोतरा, खम्भात, पेथापुर, पाटण एवं पालनपुर के जैन मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई थी।
विक्रमी संवत १३०३ में चित्रवालगच्छीय जैनाचार्य श्री ग्रामदेवसरिजी सेठ आम्रपाल संघवी के संघ के साथ जीरावल तीर्थ पधारे।
विक्रमी संवत् १३१८ में खीमासा संचेती ने जैनाचार्य श्री विजयहर्षसूरिजी की निश्रा में एक संघ यात्रा का आयोजन किया।
वि. सं. १३४० में मालव मंत्रीश्वर पेथडशाह के पुत्र झांझण शाह ने माघ सुदी ५ को एक तीर्थ यात्रा का संघ निकाला था। यह संघ जीरावल पाया था। यहां संघवी ने एक लाख रुपये मूल्य का मोती एवं सोने के तारों से भरा चंदोबा बांधा था। इसका वर्णन पंडित रत्नमंडलगणी ने अपने 'सुकृतसागर' में किया है।
वि. सं. १४६८ में संघपति पातासा ने खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपद्मसूरिजी महाराज की निश्रा में एक तीर्थ यात्रा का आयोजन किया।
मांडवगढ़ वासी झांझरण शाह के पुत्र संघवी चाहड़ ने जीरावल एवं अबूंद गिरि के संघ निकाले थे। उनके भाई पाल्हा ने जीरावल में एक चंदोबे वाला महामण्डप तैयार करवाया था
"जीरापल्ली महातीर्थे मण्डपं तुचकार सः। उत्तोरणं महास्तम्भं वितानांशुकभूषितम् ॥"
-काव्य मनोहर सर्ग-७ खंभात निवासी साल्हाक श्रावक के पुत्र राम और पर्वत ने वि. सं. १४६८ में जीरापल्ली पार्श्वनाथ तीर्थ में यात्रा कर बहुत धन खर्च किया था।
કહી આર્ય કલ્યાણર્ગોત્તમ સ્મૃતિગ્રંથ પર
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