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________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmIIIIIIII I IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIamw[२१] इसी प्रकार खरतरगच्छ के श्री जिनतिलकसूरिजी महाराज ने अपने ५२ शिष्यों के साथ एवं कीर्तिरत्नसूरिजी ने अपने ३१ शिष्यों सहित यहां अलग अलग चातुर्मास किये थे। तपागच्छीय श्री जयतिलकसूरिजी महाराज ने अपने ६८ शिष्यों के साथ यहां चातुर्मास किया था और मुनि सुन्दरसरिजी ने भी अपने ४१ शिष्यों के साथ यहां चातुर्मास किया था। इन मुनि सुन्दरसूरिजी के उपदेश से सिरोही के राव सहसमल ने शिकार करना बन्द कर दिया था एवं पूरे क्षेत्र में अमारी का प्रर्वतन करवाया। इन्होंने सन्तिकरं स्तोत्र की रचना की थी। जीरापल्लीगच्छीय उपाध्याय श्री सोमचन्दजी गरिण ने अपने ५० शिष्यों के साथ इस तीर्थ की भूमि पर चातुर्मास किया था। नागेन्द्रगच्छीय श्री रत्नप्रभसूरिजी महाराज ने अपने ६५ शिष्यों सहित यहां पर चातुर्मास किया था। पीप्पलीगच्छीय वादी श्री देवचन्द्रसूरिजी महाराज ने अपने ६१ शिष्यों के साथ यहां चातुर्मास किया था, ये प्रभावक प्राचार्य शांतिसूरि के शिष्य थे। इसके अतिरिक्त बहुत से समर्थ जैनाचार्यों ने यहां विहार के दौरान विश्राम किया था। बहुत से प्राचार्यों ने जोरावल के जीर्णोद्धार में बहुत योगदान दिलवाया था, उनके नाम देवकुलिकाओं के शिलालेखों में उत्कीर्ण हैं । जीरावला पाश्र्वनाथजी के चमत्कार भगवान् पार्श्वनाथ तो स्वयं चिन्तामणि हैं। उनके महाप्रभावक स्वरूप का वर्णन मैं तुच्छबुद्धि क्या कर सकता हूं ? यहां कुछ प्रसंग मात्र आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। (१) यह घटना वि. सं. १३१८ की है। जैनाचार्य श्री मेरुप्रभसूरिजी महाराज अपने २० शिष्यों सहित ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्री जीरापल्ली गाँव की ओर जा रहे थे। वे कुछ ही आगे बढ़े थे कि रास्ता भूल गये और बहुत समय तक पहाड़ी की झाड़ियों के आसपास चक्कर लगाते रहे किन्तु रास्ता नहीं मिला । उधर दिन अस्त होता जा रहा था। इस जंगल में हिंसक जानवरों की बहुलता थी और रात का समय जंगल में व्यतीत करना जससे खाली नहीं था। इस पर प्राचार्य श्री ने अभिग्रह धारण किया कि जब तक वे इस भयंकर जंगल से निकल कर श्री जीरावल पार्श्वनाथजी के दर्शन न करलेंगे, तब अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। इस अभिग्रह के कुछ ही समय बाद सामने से एक घुड़सवार आता दिखाई दिया। इस भयंकर घाटी में जहाँ उन्हें घंटों कोई आदमी दृष्टिगोचर न हया था, वहां घोड़े पर आदमी को प्राते हुए देखकर कुछ ढाढस बंधा । घुड़सवार ने प्राचार्य श्री को जीरावल्ली गांव तक पहुँचा दिया। प्राचार्य श्री ने इस घटना का वर्णन किया है। (२) विक्रम संवत् १४६३ के समय की बात है। प्रोसवाल जातीय एवं दुधेडिया गोत्रीय श्रेष्ठीवर्य ग्राभासा ने भरुच नगर से १५० जहाज माल के भरे और वहां से अन्य देश में व्यापार के लिये रवाना हुा । जब जहाज मध्य समुद्र में पहुँच गया तो समुद्र में बड़ा भारी तूफान उठा। सभी जहाज डांवाडोल होने लगे। प्राभासा को ऐसे संकट काल में शान्तिपूर्वक वापस लौटने का विचार पाया और उसने प्रतिज्ञा की कि यदि उसके जहाज सही सलामत पहुँच जायें तो वहां पर पहुँचते ही सबसे पहले श्री जीरावल पार्श्वनाथजी के दर्शन करूंगा। और उसके बाद अन्य देश में व्यापार के लिये रवाना होऊंगा। इस प्रकार प्रतिज्ञा करके जहाजों को वापस लौटाने का ચી શ્રી આર્ય કાયાણગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ કહી Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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