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होकर जनता भागने लगी तब प्राचार्यश्री जी ने अपने दैवी चमत्कारों से दुश्मन की सेना को भगा कर नगर में शान्ति स्थापित की। चमत्कारी प्राचार्यश्री जी ने एक बार अचानक उपाश्रय में भीषण सांप को देखकर साधु साध्वी भयभीत होने लगे तब आपने अपने चमत्कारी प्रभाव से उसे वहीं पर स्तम्भित कर दिया। वि० सं० १५०५ में प्राचार्यश्री जयकेसरीसरि जी म. सा० ने बाहड़मेर नगर में श्री शीतलनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की। वि० सं० १५२७ में भी पाप कोटड़ पधारे । वि० सं० १५६७ पोष वदि ६ गुरुवार को के प्राचार्यश्री भावसागरसूरि जी म. सा० ने कोटड़ादुर्ग में श्री. पार्श्वनाथ भगवान के बिंब की विराट समारोह साथ प्रतिष्ठा की। वि० सं० १६५६ से १६५९ की अवधि के बीच युगप्रधान आचार्यश्री धूममूर्तिसूरि जी म० सा० का बाहड़मेर क्षेत्र में बिहार रहा। वि० सं० १६५९ में प्रापश्री ने बाहडमेर में चातुर्मास किया और यहां के श्री पार्श्वनाथ मन्दिर का निर्माण करवा कर प्रतिष्ठा करवाई। वि० सं० १७२३ में प्राचार्यश्री अमरसागरसूरि जी म० सा० ने बाहड़मेर में चातुर्मास किया। इन्हीं प्राचार्य के गुरुभाई महोपाध्याय श्री रतनसागर जी म० सा० के पट्टधर शिष्य उपाध्याय श्री. मेघसागर जी म० सा० के शिष्य मुनि श्री. वृद्धिसागर जी म. सा. निवासी श्री. जेमल की धर्मपत्नी सीरियादेवी की कुक्षि से वि० सं० १६६३ चैत्रवदि ५ का जन्म हुमा । नामकरण श्री वृद्धिचंद रख गया। श्री वृद्धिचंद ने उपाध्याय श्री मेघसागर जी म. सा० से वि० स० १६८० माह वदि २ को दीक्षा ली । उपाध्याय जी मेघसागर जी म० सा० का बाहड़मेर नगर में वि० सं० १६३३ ज्येष्ठ सुदि तृतीया को स्वर्गवास हा । तब इनके पट्टधर शिष्य कोटड़ा निवासी मुनि श्री. वृद्धिसागर को बनाया गया। वि० सं० १९७० में मुनि श्री. मेघसागर जी म. सा० को बालोतरा में उपाध्याय की पदवी विशाल समारोह के बीच दी गई और इसी गच्छ की साध्वी श्री. विमलश्री ने यहां इसी वर्ष चातुर्मास कर उपाध्याय श्री मेघसागर जी म० सा० की गुहली की रचना की । वि० सं० १९९१ में क्रियाद्वारक, अचलगच्छाधिपति आचार्य श्री. गौतमसागरसूरीश्वर जी म० सा० के शिष्य पूज्य गणाधिपति श्री नीतिसागर जी म. सा. के शिष्य मुनि श्री धर्मसागर जी म० सा० का बाडमेर नगर चातुर्मास हुआ । वर्तमान प्राचार्यश्री गुणसागरसूरीश्वर म. सा. ने अपनी प्राज्ञावर्तनी साध्वीश्री प्रियवंदाश्री जी म. सा. साध्वीश्री वनलताश्री. म० सा० एवं साध्वीश्री अक्षयगुणाश्री म० सा० ने पहली बार वि० सं० २०२४ में बाड़मेर नगर में चातुर्मास करने के लिये भेजा। इन्हीं साध्वियों ने बाडमेर नगर में वि० सं० २०२५, २०२७ एवं २०२९ में चातुर्मास सम्पन्न किये । इन साध्वियों के चातुर्मास से इस गच्छ में एवं जैन समाज में नवीन जागृति का प्रादुर्भाव हुना।
प्राचीन ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक गतिविधियों का प्रमुख नगर बाड़मेर अांतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र होने का भी गौरव प्राप्त किये हए है, जहां जैन धर्मावलिम्बयों की सर्वाधिक बस्ती है। तपस्या की इस पावन धरती पर अचलगच्छ के क्रियोद्धारक त्यागी एवं तपस्वी, कच्छ हालार, देशोद्धारक, राजस्थान के पुरुषरत्न, प्रातःस्मरणीय अचलगच्छाधिपति परम पूज्य स्वर्गीय दादा गुरुदेव प्राचार्य भगवन्त श्री. गौतमसागरसरीश्वर जी म. सा. के पट्टधर बालब्रह्मचारी, क्षमाशील, परम तपस्वी, पंडितवर्य, प्रखर वक्ता, साहित्यसर्जक, श्री प्रार्यरक्षित जैन तत्वज्ञान विद्यापीठ एवं श्री. कल्याण गौतम नीति जैन तत्वज्ञान श्रीविका विद्यापीठ के संस्थापक, गुणों के सागर अचलगच्छाधिपति, परमपूज्य आचार्य भगवन्त श्री. गुणसागरसूरीश्वर जी म० सा० का बाड़मेर नगर में प्रथम बार वि० सं० २०३३ चैत्र शुक्ला ग्यारस दिनाक १० अप्रेल १९७६
ર. સી
આર્ય ક યાણગૌતમસૂતિગ્રંથ
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