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________________ अचलगच्छाधिराज श्री कल्याण सागरसूरीश्वरजी के चतुर्थ, जन्म शताब्दी वर्ष (सं. २०३२-३३) में अचलगच्छाधिपति आ. भ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब का बाड़मेर (राजस्थान) में ऐतिहासिक चातुर्मास एवं प्रतिष्ठामहोत्सव जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थङ्कर भगवान् महावीर स्वामी के गणधर श्री. सुधर्मा स्वामी की परम्परा में ४७ वें पट्टधर परमपूज्य युगप्रधान दादाश्री आर्यरक्षितसूरिजी चकेश्वरी देवी एवं अन्य शासन देवियों के अनुरोध पर "विधिपक्ष गच्छ' का प्रवर्तन किया। आपके ही पट्टधर युगप्रधान दादाश्री जयसिंहसूरिजी म. सा० ने अनादिकाल से चली आ रही सांवत्सरिक पंचमी की परम्परा पर अचल रहने के कारण महाराज कुमारपाल ने आपके गच्छ को "अचलगच्छ" से सम्बोधित किया। तब से इस गच्छ में कई प्राचार्य महाप्रभु हुए हैं जिनके दैवी चमत्कारों, धार्मिक गतिविधियों, त्याग एवं तपस्या, साधना एवं भक्ति से जनमानस का कल्याण हा है । देश के कोने कोने में इस गच्छ के साधु-साध्वियां का धर्मप्रचार हेतु बराबर विचरण होता रहा है। वर्तमान राजस्थान प्रदेश के बाड़मेर नगर में इस गच्छ के प्रथम प्रवर्तक परम पूज्य युगप्रधान दादाश्री प्रार्यरक्षितसूरिजी म. सा० का वि० सं० १२१६ में आगमन हुआ और आपके ही सद् उपदेश से एवं परम पूज्य श्री जयसिंहसरि जी म. सा. की प्रेरणा से यहां के श्री गुणचन्द्र ने जैन धर्म स्वीकार किया और इनके वंशज बडेरा गोत्र के नाम से सर्वविख्यात हए। आचार्यश्री जयसिंहसरि जी म० सा० के उपदेश से श्री सोमचन्द ने वि० सं० १२११ के आसपास बाड़मेर जिले के कोटड़ा में श्री पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर बनाया। वि० सं० १२४४ में प्राचार्यश्री जयसिंहसरिजी म. सा० कोटड़ा पधारे जहां परमार राजपूत श्री. राजसेन ने जैन धर्म स्वीकार किया और इसके वंशज पोलड़िया गोत्र से विख्यात हुए । इसी कोटडा में प्राचार्य श्री. जयसिंहसरिजी म. सा. के उपदेश से राठौड़ केशवजी ने दत्तक पुत्र छजल के साथ जैन धर्म स्वीकार किया। श्री छजल के नाम से इनके वंशज जैनधर्म में छाजेड़ गोत्र से सर्वविख्यात हुए। आपश्री जी ने लोलाड़ा नगर के राठौड़ रावत फरणगर को प्रतिबोध देकर जैनधर्म अंगीकार करवाया। इनके वंशज प्रोसवाल जाति के पड़ाईया गोत्र से विख्यात हए। आपके ही पट्टधर आचार्य श्री धर्मघोषसरिजी म. सा० ने क्षत्रियों को प्रतिबोध देकर जैन बनाया। जो जैनजगत् में बोहरा गोत्र से विख्यात हुए । वि० सं० १३०६ से पूर्व प्राचार्य श्री महेन्द्रसूरिजी म० सा० ने अपना चातुर्मास किराडू में किया। वि० सं० १४७० में चमत्कारी प्राचार्य श्री मेरुतुगसूरि जी म. सा० बाहड़मेर पधारे उस समय बाहड़मेर पर शत्रों ने भीषण आक्रमण किया। दुश्मन के प्राक्रमण से भयभीत શ્રી શ્રી આર્ય કલ્યાણૉતમ સ્મૃતિ ગ્રંથ છે, AN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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