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की हैं, यह अर्थ भी ग्रहण किया जा सकता है। इस अर्थ के आलोक में वाडव को ही विराटनगर का मंत्री मान "सकते हैं । इस प्रश्न पर निर्णय करना विद्वच्छष्टोंका कार्य है ।
इस उहापोह से यह तो स्पष्ट है कि विराटनगरीय वाडव का समय १५ वीं शती का उत्तरार्द्ध है। वाडव जैन है, विद्वान् है । और उस समय (१५ वीं शती) विराटनगर में अंचलगच्छीय श्वेताम्बर जैनों का प्रभाव था, बाहुल्य था, मंत्री भी जैन श्रावक था।
वाडव की अन्य कृतियां जो अप्राप्त हैं उनके लिये शोध विद्वानों का कर्तव्य है कि खोज करके अन्य ग्रन्थों को प्राप्त करें और वाडव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विशेष प्रकाश डालें।
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- से जाणमजाणं वा, कटु आहम्मिों पर्य।
संवरे खिप्पमप्पाणं, बोयं तं न समायरे ॥ जानकारी में अथवा अनजान में कोई अधर्म कार्य हो जाय तो स्वयं की आत्मा को उसमें से तुरन्त हटा लेना चाहिए । फिर दुबारा उस कार्य को नहीं करना चाहिए।
संगनिमित्त मारइ, मणइ अलीअं करेइ चोरिक्कं ।
सेवई मेहुण मुच्छ, अप्परिमाणं कुणइ जीवो ॥ परिग्रह के कारण जीव हिंसा करता है, असत्य बोलता है, चोरी करता है, वासनामय बनता है और अत्यधिक आसक्ति करता है । इस प्रकार परिग्रह पांचों पाप-कर्मों की जड़ है।
गंथच्चाओ इंक्यि-णिवारणे अंकुसो व हथिस्स ।
णयरस्स गाइया वि य, इंदियगुत्ती असंगतं ॥ जिस प्रकार हाथी को वश में करने के लिए अंकुश होता है और शहर की रक्षा के लिए खाई होती है, उसी तरह इन्द्रिय-निवारण के लिए परिग्रह का त्याग (कहा जाता) है। परिग्रह-त्याग से इन्द्रियां वश में रहती हैं।
(ક) હા આર્ય કદાદાગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ,
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