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कारागार में रहे हए यतियों का उद्धार किया है, जेल से छडाया है। ऐसे श्री मेरुचन्द्र वाचनाचार्य के आदेश से वाडव ने (मैंने) पूर्वोक्त १७ ग्रन्थों पर प्रवचूरि (लघुटीका) की रचना की है। इन प्रवचूरियों का संशोधन विराटनगर निवासी मन्त्री पंचानन और श्री माणिक्यसुन्दरसूरि ने किया है।
इस प्रशस्ति से कई नवीन तथ्य प्रकाश में आते हैं जिन पर विचार किया जाना आवश्यक है ।
(१) पार्श्वलिखित 'अंचलगच्छीय दिग्दर्शन' के अनुसार जयशेखरसरि का समय लगभग १४०० से १४६२ का है। ये महेन्द्रप्रभसरि के द्वितीय शिष्य हैं। महेन्द्रप्रभसूरि के पाट पर मेरुतुगसूरि बैठे । इसलिये मुख्य पट्ट-परम्परा में जयशेखरसूरि नहीं आते यही कारण है कि जयशेखरसूरिके शिष्य वाचनाचार्य मेरुचन्द्र का इस इतिहास में नामोल्लेख भी प्राप्त नहीं होता। जयशेखरसूरि के शिष्य होने से मेरुचन्द्र का समय १४२० से १५०० के मध्य का निश्चित रूप से माना जा सकता है।
(२) जयशेखरसूरि के लिये 'बभूवः' शब्द का प्रयोग होने से वाडव का रचना काल १४६५ से १५०० के मध्य का माना जा सकता है।
(३) मेरुचन्द्र ने यवनभूपति को प्रतिबोध देकर कारागारमें रहे हुये यतियों को छुड़ाया। यह एक नवीन तथ्य है। वह यवनभूपति कौन था ? कहां का था ? और उसने किस कारण से यतियों को जेल में डाला था ? आदि प्रश्नों पर, प्रशस्ति में नाम और स्थान का उल्लेख न होनेसे कोई प्रकाश नहीं पड़ता है। इतिहास के शोधबिद्वानों का कर्तव्य है कि इसपर शोध करके प्रकाश डालें।
(४) इन टीकाओं के संशोधकों में वाडव ने दो नाम दिये हैं :-(१) श्रीमाणिक्यसुन्दरसूरि और (२) विराटनगरीय मन्त्री पंचानन ।
श्री माणिक्यसुन्दरसरि का समय लगभग १४३५ से १५०० के मध्य का है। ये संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान् रहे हैं और गुजराती भाषा के प्राचीन लेखकों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है । इनकी दो कृतियां श्रीधरचरित्र महाकाव्य (१४८५) और गुणवर्माचरित्र (१४८५) राजस्थान प्रदेश में ही रचित है। इनके विशेष परिचय के लिये 'अंचलगच्छीय दिग्दर्शन' द्रष्टव्य है।
(५) विराट का इतिहास प्रकाशित न होने से मन्त्री पंचानन के सम्बन्ध में प्रकाश डालना सम्भव नहीं है किन्तु इतना निश्चित है कि पंचानन संस्कृत काव्य, लक्षण-शास्त्र का धुरन्धर विद्वान था। जैन था और विराट नगर का मंत्री भी।
(६) यहां एक प्रश्न विद्वानों के लिये अवश्य ही विचारणीय है कि 'मन्त्रिपन्चाननैन च' शब्द स्वतन्त्र व्यक्तित्व का सूचक है या टीकाकार वाडव का विशेषण ? यदि स्वतन्त्र व्यक्तित्व का सूचक है तबतो पूर्वोक्त अर्थ ठीक ही है कि विराटनगरीय मन्त्री पंचानन ने इस समस्त टीका ग्रन्थों का संशोधन किया । और यदि इस शब्द को वाडव का विशेषण मानें तो, मन्त्रियों में पंचानन अर्थात सिंह के समान, बाडव ने इन ग्रन्थों पर प्रवरिया
છે. શીઆર્ય ક યાણ ગૌતમસ્મૃતિ ગ્રંથ
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