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संस्कृत की शतक-परम्परा
[ ३२१ न होकर गणनात्मक है। कुछ साहित्यिक विधानों के प्रमुख ग्रन्थों का नामोल्लेख करके सन्तोष कर लिया गया है । कवियों का वर्णनक्रम भी सदैव निर्दुष्ट नहीं है । कई परवर्ती कवियों को पहले तथा पूर्ववतियों को पश्चात् रख दिया है । लेखक ने पद्यों की हिन्दी में विस्तृत व्याख्या की है, जिसमें संस्कृत के विभिन्न लेखकों की प्रशंसा में स्वरचित १०२ पद्य यथास्थान उद्धृत किये हैं । सम्भवतः व्याख्या के इन पद्यों तथा मूल श्लोकों को मिलाकर ही काव्य को शतक द्वय' का उपनाम दिया गया है। अन्यथा मूल काव्य की पद्य संख्या से इस उपशीर्षक की संगति नहीं बैठती। व्याख्या में कुछ नवीन तथा अज्ञात टीकाकारों का नामोल्लेख हुआ है। इसके रचयिता म. म. छज्जूराम शास्त्री प्रतिभाशाली कवि, नाटककार, टीकाकार तथा दर्शन एवं व्याकरण. के मान्य पण्डित हैं। १६
राजकीय संस्कृत महाविद्यालय मुज्जफरपुर के साहित्य-प्रधानाध्यापक श्री बदरीनाथ शर्मा की अन्योक्ति साहस्री में (६३-७२) दस शतक सम्मिलित है। शतकों के नाम हैं-जलाशयशतक, खेचरशतक, शकुन्तशतक, स्थावरशतक, तरुवरशतक, लताशतक, पशुशतक, यादश्शतक, क्षुद्रजन्तुशतक, प्रत्येकशतक उपरोक्त प्रतीकों पर आधारित सौ अन्योक्तियों का संकलन है। अन्योक्ति साहस्री काशी से प्रकाशित हुई है। प्रसिद्ध नाटककार पं० मथुराप्रसाद दीक्षित ने एक (७३) अन्योक्तिशतक की भी रचना की है। आधुनिक नाटककारों में पण्डित मथुराप्रसाद अग्रगण्य हैं । उनके भक्त सुदर्शन, वीर प्रताप, वीर पृथ्वीराज, भारत विजय आदि नाटक बहुत सफल, रोचक तथा लोकप्रिय हैं।
गान्धी स्मारक निधि, देहली से प्रकाशित (७४) गान्धी सूक्ति मुक्तावलि भारत के भूतपूर्व वित्त मन्त्री श्री चिन्तामणि देशमुख द्वारा संस्कृत-पद्य में अनूदित गांधी जी की सौ सक्तियों का संग्रह कवि ने प्रत्येक पद्य का अंग्रेजी में अनुवाद भी कर दिया है। गान्धी सूक्ति मुक्तावलि का उपशीर्षक अथवा नामान्तर तो प्रत्यक्षत: शतक नहीं है, किन्तु अनुवादक ने भूमिका में स्पष्टतः इसे शतक की संज्ञा प्रदान की है। 'I, therefore, Complated a Sataka and thought that this form and size would not be unweloome to the public.'
नागपुर से सन् १९५८ में प्रकाशित प्रो० श्रीधर भास्कर वर्णेकर की जवाहर तरङ्गिरणी अपरनाम (७५) भारतरत्नशतक एक आधुनिक प्रबन्धात्मक शतक है । इसमें भारत के प्रथम प्रधान मन्त्री युग पुरुष जवाहरलाल नेहरू की गौरवशाली जीवन गाथा का मनोरम वर्णन हुग्रा है। भारतरत्नशतक उन रचनाओं में है जिनसे साहित्य की प्रतिष्ठा तथा यथार्थ गौरव वृद्धि होती है। संस्कृत से अनभिज्ञ पाठकों के उपयोग के लिये कवि ने स्वकृत अंग्रेजी अनुवाद भी साथ दिया है। श्री वर्णेकर प्रतिभाशाली कवि हैं। भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार है। उनकी कवित्वशक्ति रोचक तथा प्रभावशाली है । प्राचीन भारतीय इतिहास के पात्रों के प्रतीकों के माध्यम से कवि ने नेहरूजी की कर्मठता, स्वार्थहीनता तथा राजनीति-नपुण्य का भव्य चित्र प्रकित किया है।
सोढश्चिराय खरदूषणसंनिपात : यद्वा नरोत्तमकुलंघटिता सुहृत्ता। उल्लंघितो बहलसंकट वारिधिश्च रामायणं सुचरिते प्रतिबिम्बितं ते ।।
१६. छज्जूराम शास्त्री की कृतियों के विवेचन के लिये देखिये 'विश्वसंस्कृतम्' फरवरी, १९६४ में प्रकाशित
मेरा लेख 'केचित् पञ्चनदीयाः संस्कृतकवयः' ।
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