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सत्यवत 'तृषित'
दुर्योधनंप्रखरभीष्मबलावगुप्तं दुः शासनं निहतपञ्चजन प्रभावम् । निस्सारतां जन जनार्दन सङ्गतेन नीत्वा, त्वयैव रचितं नवभारतं हि ।। स्वाथै कसक्ता पुरुषाधमसेवितेयं बाराङ्गनेव नृपनीतिरिति स्वनिन्दाम् । निस्स्वार्थमेत्य शरणं पुरुषोत्तमं वा
दूरीचकार सुगतं हि यथाम्रपाली ।। प्रधानमन्त्री के प्रिय व्यायाम 'शीर्षासन' की इस पद्य में भावपूर्ण व्याख्या की गयी है।
भूर्रहति ऋतुमयी शिरसा प्रणाम द्यौः किन्तु भोगबहुला चरणाभि घातम। इत्येव कि निजमनोगत मुत्तमं त्वं
शीर्षासनेन नियतं प्रकटीकरोषि ॥ भारतरत्नशतक के पृष्ठ पत्र पर श्री वर्णेकर की रचनामों के विज्ञापन में तीन (७६-७८) शतकों का उल्लेख है-विनायकवैजयन्ती शतक, रामकृष्ण परमहंसीय शतक, तथा शाकुन्तलशतश्लोकी । सम्भवतः ये सभी अप्रकाशित हैं ।
साहित्य अकादमी दिल्ली के प्रकाशन 'आज का भारतीय साहित्य' में सम्मिलित 'आधुनिक संस्कृतसाहित्य के उपयोगी सर्वेक्षण' में डॉ. राघवन् ने (७९-८३) पांच शतकों का-वेमनाशतक, सुमतिशतक, दशरथी शतक, कृष्ण शतक, भास्कर शतक-उल्लेख किया है। ये मूल तेलुगु शतकों के श्री एस. टी. जी.. वरदाचारियर द्वारा किये गये संस्कृत रूपान्तर हैं।
पररचित पद्यों तथा सूक्तियों के कुछ संकलन भी शतकाकार प्रकाशित हुए हैं । जगदीशचन्द्र विद्यार्थी ने ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के सौ-सौ मन्त्रों के १७ चयन (८४-८६) ऋग्वेद शतक, यजुर्वेद शतक तथा सामवेद शतक के नाम से प्रस्तुत किये हैं । ऋग्वेद शतक दिल्ली से १९६१ ई० में प्रकाशित हुआ, शेष दोनों १६६२ में । इसी प्रकार हरिहर झा ने संस्कृत कवियों की सूक्तियों को सूक्ति शतक के (८७-८८) दो भागों में संकलित किया है। प्रत्येक भाग में पूरे सौ-सौ पद्य हैं। सूक्तिशतक चोखम्बा भवन, वाराणसी से प्रकाशित हुआ है।
__ मेरे मित्र डा. सत्यव्रत शास्त्री की (८६) शतश्लोकी की 'बृहत्तर भारतम्' 'संस्कृत प्रतिभा' में प्रकाशित हुई। इसमें वृहत्तर भारत की संस्कृति तथा वैभव का गौरव गान है। कविता सर्वत्र लालित्य : तथा माधुर्य से समवेत है। डॉ. सत्यव्रत प्रतिभासम्पन्न कवि हैं। उनके दो अन्य काव्य-श्री बोधिसत्वचरितम् तथा गोविन्दचरितम् देहली से प्रकाशित हुए हैं।
___ कण्टकार्जुन की कण्टकाञ्जलि अपरनाम (६०) नवनीति शतक प्राधुनिक संस्कृत-साहित्य की क्रान्तिकारी कृति है । नवनीति शतक प्राधुनिक विषयों पर व्यंग्यात्मक शैली में निबद्ध १६७ मुकक्त पद्यों १७. श्री बोधिसत्वचरितम् का विवेचन मैंने "विश्व संस्कृतम्, में प्रकाशित अपने पूर्वोक्त लेख में किया है ।
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