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गोपालनारायण बहुरा
में महात्मा गांधी स्मृति मन्दिर प्रादि इमारतें कई लाख रुपयों की लागत से मुनिजी ने निर्मित कराई हैं . जिनका सार्वजनिक उपयोग हो रहा है।
वास्तव में राजस्थान के लिए मुनिजी ने बहुत किया है जिससे इसका नाम ऊचा हुआ है। इनके कार्यों से किसान से लेकर आचार्य तक लाभान्वित हुआ है।
सन् १९६३ के प्रारम्भ में ही श्री मुनिजी बहुत बीमार हो गए थे। बात यह हुई कि अहमदाबाद से जोधपुर पाते समय रेल की खिड़की का कांच उनके बाए हाथ की तर्जनी पर आ गिरा और घाव बन गया । वह घाव बाद में सैप्टिक हो गया और मुनिजी बहुत कमजोर हो गए। जोधपूर और अहमदाबाद में दो तीन महीने इलाज के बाद घाव तो ठीक हो गया परन्तु कमजोरी बढ़ती ही गई। उस समय ही मुनिजी ने राजस्थान सरकार को एक पत्र में स्पष्ट लिख दिया था कि वे अब प्रतिष्ठान के कार्य से निवृत्त होना चाहते हैं। परन्तु सरकार के ध्यान में उस समय कोई विकल्प नहीं आया और मुनिजी के परामर्श से ही कुछ ऐसे प्रबन्ध कर दिए गए कि मुनिजी को श्रम कम करना पड़े और उनका मार्ग-दर्शन प्रतिष्ठान को निरन्तर मिलता रहे । कार्य चलता रहा और कोई विशेष अड़चन नहीं आई। सरकार को मुनिजी का स्थान लेने के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिल रहा था और न इस दिशा में सोचने की किसी को आवश्यकता ही अनुभव हो रही थी । परन्तु सन् १९६७ में राजस्थान सरकार ने राजकीय कर्मचारियों की सेवा-निवृत्ति की पायु-सीमा ५८ से घटाकर ५५ वर्ष की कर दी और सभी पञ्चपञ्चाशतोत्तरवर्षीयों को एक साथ सेवानिवृत्त करने के अनिवार्य आदेश जारी कर दिए गए । इस आदेश की परिधि में मैं भी आ गया और १ जुलाई, १९६७ ई० से मेरी निवृत्ति का आदेश प्राप्त हो गया । उस समय मुनिजी ने तत्कालीन शिक्षासचिव स्व. विष्णुदत्तजी शर्मा के पास जा कर स्पष्ट कह दिया कि अब मैं प्रतिष्ठान का काम बिल्कुल नहीं करूगा और मुझे भी निवृत्त कर दिया जाय । तदनुसार वे भी १ जुलाई, १९६७ ई० से ही प्रतिष्ठान के कार्य से निवृत्त हो गए। परन्तु अब भी चन्देरिया में रहते हए वे कोई न कोई रचनात्मक कार्य करते रहते हैं; नये निर्माण कराते हैं, बालवाड़ियों को देखते हैं, खेतीबाड़ी को सम्हालते हैं और उनके तीर्थ-स्थान-कल्प पाश्रम में प्राते रहने वाले दर्शनार्थियों से मिल कर विविध चर्चाए करते रहते हैं।
राजस्थान में कहावत है कि नाम या तो 'भीतड़ों' से रहता है या 'गीतड़ों' से; अर्थात् नाम अमर करने के लिए या तो सुन्दर इमारतें बनवाये या फिर ऐसा यश उपाजित करे कि गीतों में बखान हो या स्वयं काव्य-निर्माण करे । मुनिजी ने राजस्थान की कीति को भीतड़ों और गीतड़ों, दोनों ही के द्वारा चिरस्थायी बनाने के कार्य किये हैं। चित्तौड, चन्देरिया और रूपाहेली में जो इमारतें उन्होंने बनवायी हैं वे चिरकाल तक मुनिजी की यशोगाथा तो गाती ही रहेंगी, साथ ही महात्मा गांधी, हरि भद्र सूरि और भामासाह के नामों से सम्बद्ध होने के कारण राजस्थान के पूर्व गौरव को भी प्रतिदिन पुनरुज्जीवित करती रहेंगी। यही नहीं, इन इमारतों की रचना-कल्पना में जिस प्राचीन भारतीय स्थापत्य को प्राधार-भूमि बनाया गया है वह भी युग-युग के संशोधक के लिए अध्ययन की वस्तु बना रहेगा।
इसी प्रकार शोध कार्य में सतत् संलग्न रह कर मूनिजी ने जो अज्ञात एवं दुर्लभ्य विपुल साहित्यिक सामग्री सामने ला दी है वह भी संशोधक विद्वानों को कई पीढ़ियों तक शोध-ग्रन्थ लिखने में प्रेरणा और
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