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राजस्थान को मुनिजी की देन
इसी प्रकार जब राजस्थान साहित्य अकादमी ने तत्कालीन राज्यपाल डॉ० सम्पूर्णानन्दजी और शिक्षामंत्री हरिभाऊ जी उपाध्याय के साथ मुनिजी को 'मनीषी' पदवी से विभूषित किया तो मुख्य समारोह में डॉ० सम्पूर्णानन्दजी के दायीं ओर मुनिजी बैठे थे और बायीं ओर उपाध्यायजी । स्वागत भाषण का उत्तर देने जब मुनिजी खड़े हुए तो उन्होंने कहा 'मैं तो इस योग्य कदापि नहीं था, आप लोग यह हाथी की झूल ऊंट पर डाल रहे हैं।' सम्पूर्णानन्दजी और मुनिजी के शरीरों को देख कर पूरी सभा में हंसी के फव्वारे चल गए।
मुनिजी सामान्यतया जितने सरल और नम्र हैं, मौका पड़ने पर उतने ही दृढ़निश्चयी और हठ ठान कर बैठने वाले भी हैं । सन् १९६५ ई० में जब पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्रों पर गोला-बारी शुरू की तो उत्तर पश्चिमी सीमा पर जोधपूर पहला स्थान था जो उसकी चपेट में आता था। वहां १५-१६ दिन तक प्रायः नित्य ही गोले पड़ते रहे । मुनिजी उस समय प्रवास में थे परन्तु सूचना मिलते ही तुरन्त वहां पा धमके और वीर सेनानी की भांति मैदान में डट गए। प्रतिष्ठान के सभी कर्मचारियों का मनोबल बढ़ गया और हम सब के सब मुनिजी के साथ सुरक्षा कार्यवाही में भाग लेने लगे। कुछ लोग सुरक्षा दल में तो, कुछ नागरिक रक्षा ट्रकड़ियों में प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे। मुनिजी और कुछ साथी प्रतिष्ठान के प्रांगण में ही रात दिन खाइयों में और पेड़ों तले बने रहते थे । परन्तु मुनिजी एक दिन भी खाई में नहीं बैठे । जब शत्रनों का हवाई जहाज अाता और anti-aircraft guns चलने लगतीं तो वे भवन से बाहर आकर मैदान में खड़े हो जाते और इस तरह तमाशा देखने लगते जैसे कोई आतिशबाजी देख रहा हो । अन्य सभी लोग बैठते और उनसे भी निवेदन करते परन्तु वे कहते-'इन ग्रन्थों की रक्षा करते हए इनके भवन के साथ स्वाहा हो जाने से अच्छा मरण और किस तरह हो सकता है ?'
अब से पहले राजस्थान के इतिहास के नाम से जो कुछ लिखा गया था वह अधिकतर वर्तमान एकीकृत राजस्थान की घटक रियासतों के राजाओं के विवरणों से ही भरा पड़ा है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति और गजस्थान के एकीकरण के अनन्तर मूनिजी ने राजस्थान का एक ऐसा इतिहास लिखाने की कल्पना की जिसमें इस देश की भौगोलिक इकाई को लेकर यहां की संस्कृति, साहित्य, अर्थनीति और राजनीति का विशद् विश्लेषण हो। उन्होंने इस विषय में अपने मित्र स्व. नाथूरामजी खड़गावत (निदेशक, राजस्थान अभिलेखागार) से परामर्श करके उन्हीं के द्वारा इस प्रसंग को राजस्थान सरकार में चालू कराया। डॉ० मोहनसिंह मेहता, तत्कालीन उपकुलपति, राजस्थान विश्वविद्यालय के सभापतित्व में एक इतिहास-समिति मठित की गई और मुनिजी की अध्यक्षता में सम्पादक-मण्डल का गठन हमा। तदनुसार डॉ. सत्यप्रक और दशरथ शर्मा द्वारा तैयार किया हया ग्रन्थ 'Rajasthan Through the Ages' राजस्थान अभिलेखागार, बीकानेर से प्रकाशित किया गया।
मुनिजी ने अपने कार्यकाल में राजस्थान के लिए जो कुछ किया है उसका मूल्याङ्कन करना कठिन है । सवाल यह है कि इतने से समय में क्या कोई इतना कर सकता था ? और यदि कोई करता भी, तो मुनि जी पर जो कुछ नाममात्र व्यय हुआ है इससे दस गुना व्यय करना पड़ता। फिर, मुनिजी ने तो जो कुछ उनको मिला उसे कई गुना करके वापस ही लौटा दिया है। चित्तौड़ में हरिभद्र सूरि स्मारक मन्दिर, भामाशाह भारती भवन और चन्देरिया में सर्वोदय साधना पाश्रम, सर्वदेवायतन तथा अपने जन्मस्थान रूपाहेली
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