________________
राजस्थान को मुनिजी की देन
[ २१
पृष्ठभूमि उपलब्ध कराती रहेगी। विविध ग्रन्थमालाओं, सामयिक पत्रिकाओं और अभिनन्दन ग्रन्थों ग्रादि में प्रकाशित मुनिजी के सम्पादित ग्रन्थों और लेखों की संख्या बहुत बड़ी है । कितनी ही ग्रन्थमालाओं के तो जन्मदाता ही स्वयं मुनिजी रहे हैं। 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' और 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' से विश्व के भारतीय-साहित्यिक-अनुसंघित्सु-जगत् में जो प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है, वह बहुत बड़ी है । देश में और विदेशों में भारतीय-विद्या सम्बन्धी लिखे गये शोध-निबन्धों में शायद ही कोई ऐसा हो जिसमें मुनिजी अथवा उनके सम्पादित ग्रन्थों का उल्लेख न किया गया हो। इस माध्यम से राजस्थान प्रान्त को जो मान प्राप्त हना है वह किसी भी राजनीतिक अथवा अन्य उपलब्धि की तुलना में कम नहीं है।
अपने कार्यकाल में राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान से प्रकाशित 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' में प्रकाशनार्थ मूनिजी ने शताधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ अपने प्रधान सम्पादकत्व में तैयार कराये जिनमें से अनेक का सम्पादन देश के जाने-माने भारतीय-विद्या-विशारद विद्वत्तज्जनों ने किया है। प्रायः ८६ ग्रन्थ मुनिजी के सामने ही सम्पूर्ण रूप में प्रकाशित हो चुके थे और शेष भी उस स्थिति में पहुँच चुके थे कि बाद में आने वालों को उन्हें यथावत् प्रस्तुत कर देने में न अधिक श्रम करना पड़ा और न अधिक समय ही लगा। इन ग्रन्थों पर मुनिजी द्वारा लिखे गये प्रधान सम्पादकीय और सम्पादकीय मार्मिक वक्तव्य तथ्योदबोधक और स्थायी महत्त्व के हैं। यों तो सभी ग्रन्थों के सम्पादन में रीति-नीति-निर्धारण और मार्ग दर्शन मूनिजी का ही रहा है परन्तु इस ग्रन्थमाला के लिए जिन ग्रन्थों का सम्पादन स्वयं मुनिजी ने किया है उनकी सूची इस प्रकार है :
१. त्रिपुराभारतीलघुस्तव (सं०), लघ्वाचार्य प्रणीत, सोमतिलक सूरि कृत एवं एक अज्ञात ___ कर्तृक टीका सहित। २. कर्णामृतप्रपा (सं०), सोमेश्वर भह रचित । ३. बाल शिक्षा व्याकरण (सं०), ठक्कुर सग्रामसिंह विरचित । ४. प्राकृतानन्द (सं० प्रा०) रघुनाथकविकृत प्राकृतव्याकरण । ५. उक्तिरत्नाकर (सं०) साधुसुन्दर गरिण विरचित । ६. पदार्थरत्नमञ्जूषा (सं०), श्री कृष्णमिश्र प्रणीत । ७. हम्मीर-महाकाव्य (सं०), नयचन्द्र सूरि कृत । ८. शकुन-प्रदीप (सं०) ६. गोरा बादल चरित्र (रा.), कवि हेमरतन रचित । १०. मधुमालती सचित्र कथा (रा.) ११. ए कैटलॉग आफ संस्कृत एण्ड प्राकृत्त मैन्युस्क्रिप्ट्स (३ जिल्दों में) मुनि जी के इन बहुविध कार्यकलापों से राजस्थान का जो उपकार हना है वह चिरस्मरणीय रहेगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org