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प्रेस्तेरे ग्रे. सोलोमन,
की मलता होय अने बीजु बाजुने वितण्डा पद्धति थी प्रवृत्त थनार उच्च कक्षानां चिन्तकोना ग्रथों ज्ञेय तो बधा वैताण्डिक केवल दोषदर्शी न होइ शके । तेमने बीजो परण अक प्रकार होवो जोइने—सूक्ष्म विचारक (Crilical Philosophers) कही शकाय तेवा ओनो। वीतराग वैताण्डिक तत्त्वोपप्लववादी चिन्तक होइ शके, जेने Sceptic कही शकाय । तेने ज्ञान प्रामाण्य मान्य न थी अने तेथी ते कोई मतनु स्थापन करी शकतो न थी। जयराशिभट्ट पावा चिन्तक छ । आवाज बीजा केटलाक चिन्तक ने प्रेम लागे छे के लौकिक प्रमाणो थी परम ज्ञाननी प्राप्ति शक्य न थी। माध्यमिको अने श्री हर्ष वगेरे अद्वैत वेदान्ती प्रो या कोटिना चिंतकों छे । ते ओ परम तत्त्व स्वीकारे छे पण तेनु स्थापन लौकिक प्रमाणो थी शक्य न थी तेवी तेमनी दृढ़ मान्यता छ । तत्त्व जे छ तेवू लौकिक प्रमाणो थी ज्ञान थई शकतु न थी अने जेनु ज्ञात थाय छे तेव ते होइ शके नहीं कारण के प्रा प्रमाणेनी अापसी मान्यता ज दोष रहित न थी । परा प्रज्ञा थी तेनो साक्षात्कार थइ शके पण लोकिक रीते ते ज्ञाननी प्राप्ति के ग्रे तत्त्व विवरण शक्य न थी। बीजू बाजों जयराशि जेवा तत्त्वोपप्लववादी कोइज ज्ञाननी सत्यता स्वीकारता न थी अने तेथी कोई तत्त्व विषे कशु कहे वा तैयार न थी ।
वितण्डानो व्यवहार मां उपयोग सामा पक्ष ने फटकारवा माटे, भुडो काढी नाखवा माटेज मोटे भागे थतो होय छ । पोतानी व्यवस्थित रात का सिवाय सामेनो माणस जे बोले तेनु खंडन करव ते वितण्डा । वितण्डानो अाज अर्थ न्यायना ग्रथामां उतरी आव्यो छे । प्रमाणिक पणे वितण्डानो आश्रय लेनार बह पोछा होवा ने कारणे पा पास लगभग भलाइ गयू धर्मकीति जेवा बौद्ध नैयायिक अने अकलंक हेमचंद्राचार्य वगेरे जैन नैयायिको वितण्डाने कथानो प्रकार मानना तैयार न थीं कारण के अंक पक्ष ने तेमां कोइ मतज होतो न थी (जवो वाद न्याय, प्र. ७२; न्याय-विनिश्चय २-२८२-३८४: प्रमाणमीमांसा २-१-३ ) । चरक संहितामांवाद-(विगृह्य कथा) ना बे प्रकार गणाव्या छे-जल्प अने वितण्डा-प्रतिपक्ष रज करवामां ग्रावे के न ग्रावे ते अनुसार । अने दूवरणमात्र जेवां लक्षणो सही रजू करेला अभिप्रायन ममर्थन करवामां कांइक अंशे मदद रूप थाय छे । सानातनि श्रेवितण्डाना बे प्रकार मान्य राखेला तेथी विशेष समर्थन मल छे । ते सिवाय वितण्डाना पा पासा अंगे न्याय-ग्रथोमा भाग्येज कशी सामग्री मले छे ।
पोतानो पक्ष न होवानु कारण ग्रे पण होइ शाके के कोइ ज्ञाननुप्रामाण्य सिद्ध करी शकातु न थी तेथी कोइ तत्त्व विषे वास्तवमां कशुजारणी शकाय सही; अथवा तो परम तत्त्व लौकिक प्रमाणेनी मर्यादानी बहार छे तेथी तेने विषे लौकिक प्रमाणों द्वारा कशप्रतिपादन करी शकात न थी. अने लौकिक प्रमाणों द्वारा जे ज्ञान प्राप्त थइ शके छे ते तेमने अभ्युपगमो प्रमाणे पण दोष रहित छ प्रेम तो न ज कहेवाय । साम पोतानो पक्ष न होवान प्रामाणिक कारण होइ ने केटलाक चितकों ग्रेवितण्डा-पद्धतिनो आश्रय लीधो। वितण्डानि आ कक्षानो भाग्येज कोई नैयायिक विचार करयो । नैयायिकों अनो कोइ पण चर्चा मां बे पक्ष होय, वगेरे वगेरे-श्रे निश्चित चोक्का मां रही ने ज विवेचन करच अने वाद प्रकारनी वीतरागनी वितण्डा स्वीकारनारनो अवाज अाधोंघाटमां ड्रली गयो । तेम छतां तत्त्वोपप्लवसिंह जेवा ग्रंथोनी पद्धति समजवामां अने तेमना कर्तान मूल्यांकन करवामां या मदद रूप थाय छे ।
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