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वितण्डा
कथा (बे पक्षो वञ्चनी चर्चा) ना त्रण प्रकार न्याय सूत्रकारे गणाव्याछे-वाद, जल्प, अने वितण्डा । वादना अधिकारी वीतराग होय छे, तेश्रो सत्यनिर्णयार्थ वादकरे छे, हार-जीतनो सवाल तेमने मन खास महत्वनो नथी। वादमां पक्ष अनेप्रति-पक्ष सामसामा रज़ करवा मां आवे छे अने प्रमारण अने तर्क तेमां छल, जाति अने निग्रह स्थान जेवी युक्तिप्रोनो उपयोग थायतो पण समान पणे तो नहीं ज (प्रमाण तर्कसाधनोपालम्भेः सिद्धान्तविरुद्धः पञ्चावयवोपपन्नः पक्ष प्रतिपक्षपरिग्रहो वाद:न्यायसूत्र १-२-१) जल्पनी पद्धति परण वाद जेवीज छे, तेमां परण प्रमाण अने तर्क द्वारा स्वपक्षनू खंडन करवानो प्रयत्न करवामां आवे छे; पण तेमां विरोधीनो पराभव करवानू मुख्य प्रयोजन होइ छल, जाति अने निग्रह स्थाननो समान पणे उपयोग थाय छ । (यथोक्तोपपन्नछलजातिनिग्रहस्थानसाधनोपालम्भी जल्पः--न्यायसूत्र १-२-२) तेज जल्प प्रतिपक्षनी स्थापना विनानो होय तो वितण्डा बने छ । ज्यारे चर्चा मां उतरेलो अकवादी पोताना मतनु स्थापन करतो ज नथी, मात्र प्रतिवादीना मतनू खंडन खंडन करथा करे छे त्यारे ते वितण्डा करे छे प्रेम कहेवाय छे (स प्रतिपक्ष स्थापनाहीनो वितण्डा-न्यायसूत्र १-२-३) । आना पर भाष्य
वात्स्यायन स्पष्टता करे छे के वैताण्डिकने पण पोतानोपक्ष तो होय ज छे, केवल ते तेनु स्थापन करवा प्रवृत्तथतोनथी अने थेती ज सूत्रकारे वितण्डा प्रतिपक्षहीन छे प्रेम न कहे तां प्रतिपक्षस्थापनाहीन छ प्रेम कह्य छ । उद्घोतकर अने वाचस्पति परण संमत तथा स्पष्टता करे छे के ग्रामां वैताण्डिक नो अवो आशय होय छे के विरोधीना मत के पक्षनूखंडन करवाथी पोतानो पक्ष पोतानी मेले सिद्ध थइ जशे; वैताण्डिकनो पोतानो पक्ष होय ज छे पण तेनु प्रतिपक्षना खंडन थी स्वतन्त्रपणे स्थापन करवामां आवतु न थी।
उद्द्योतकरे ओक मत नोंध्यो छे जे प्रमाणे वितण्डानु लक्षण 'दूषण मात्र' हतु । उद्द्योत करे आको प्रतिषेध करयो छे कारण के वैताण्डिकने पण जेनु खंडन करवानु छे ते पक्ष, अ पक्षनी विपर्ययात्मकता, प्रतिवादी अने वादी तरीके पोते आटली हकीकतो तो स्वीकारवीज रही अने दूषणमात्र अटलु लक्षण होय तो आनी उपपत्ति थती न थी। (जुप्रो न्यायवार्तिक, पृ. १६३; तात्पर्य टीका, पृ. ३३०) । पण चरक संहिता (पृ. २२५) मां पण वितण्डानु 'परपक्षे दोषवचनमात्रमेव' श्रेवु लक्षण आप्यु छ तेथी प्रेम कही शकाय के वितण्डा रे दुषण मात्र जे ग्रेवी परंपरा होवी जोइये।
वितण्डाति पद्धतिनो जेमा उपयोग करवामां पाश्यो छे तेवा ग्रन्थी नो अभ्यास करतां जणाय छे के आ वैताण्डिको केवल दोषदर्शी नथी पण सूक्ष्म विचारक छ जेमने कोई ज्ञाननु प्रामाण्य मान्य
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