________________
१८२
श्री रामनारायण उपाध्याय
निमाड के उत्तर में मालवे की सीमा लगी होने से वहां पर निमाडी मालवी से प्रभावित होकर बोली जाती है। इसमें निमाड के 'तुमख' को 'तमख', काई-.'कई', कहूं-'कू', वहां-वां', जवं -को । 'जद', और नहीं को 'नी' कर देने से निमाडी सहज ही मालवी से प्रभावित हो उठती है। देखिये---निमाडी का एक लोकगीत मालवी प्रमावित क्षेत्र में पहुंचकर किस कदर बदल उठा है। निमाड़ी गीत की पंक्तियां है :
सरग भवन्ति हो गिर घरनी, एक संदेसों लई जाम्रो । सरग का अमुक दाजी ख यो कहेजो, तुम घर अमुक को व्याय ॥ जेम सर अोम सारजो, हमरो तो प्रावणों नी होय ।
जड़ी दिया वज्र किवाड़, अग्गल जड़ी लुहा की जी ॥' इसका मालवी प्रभावित स्वरूप है:
सरग भवन्ति को गिरधरनी, एक संदेशों लई जावो । सरग का अमुक दाजी से यूं कीजो, तम घर अमुक को याय ।। जेम सर अोम सारजो, हमरो तो प्रावणों नी होय । जड़ी दया वजर कवाड़, अग्गल जड़ी लुपा की जी ॥
इसमें रेखाकित शब्द निमाडी से मालवी प्रभावित हो उठे हैं। इसी तरह निमाडी भाषा में प्रचलित सिंगाजी का एक गीत देखिये:
(२) अजमत भारी काई कहूं सिंगाजी तुम्हारी, झाबुप्रा देश बहादरसिंग राजा।
अरे वहां गई बाजू ख फेरी, जहाजबान न तुमख सुमर्यो, अरे वहां डूबत जहाज उबारी२ इसी का मालवी से प्रभावित स्वरूप है:(३) अजमत भारी कई कू सिंगाजी, तमारी झाबुआ देस वा बादरसिंह राजा ।
अरे वां गई बाजू ने फेरी, झाजवान ने तमख सुमऱ्या, अरे वां डूबी झाज उबारी । 3 इसमें रेखांकित शब्द निमाड़ी से मालबी प्रभावित हो उठे हैं । इसी सीमावर्ती भाषाओं के प्रभाव के आधार पर कुछ लोग निमाडी को मालवी की उपभाषा गिनते चलते हैं लेकिन वास्तव में दोनों भाषाओं का अपना अपना स्वतन्त्र स्वरूप और उच्चारण रहा है। एक अोर मालवी जहां अपने वहां की गहर गंभीर जमीन और सौन्दर्य प्रिय लोगों की अत्यन्त ही मृदु, कोमल और कमनीय भाषा है, वहीं दूसरी ओर निमाड़ी अपने यहां की ऊबड़-खाबड़ जमीन और कठोर परिश्रमी लोगों की अत्यन्त ही प्रखर, तेजस्वी और सुस्पष्ट भाषा है । उच्चारण की दृष्टि से मालवी जहां हर बात में लचीलापन लिये होती है, वहां निमाड़ी साफ सीधी बात करने की अभ्यस्त रही है।
(१) निमाड़ी लोकगीत (रामनारायण उपाध्याय) (२) लेखक द्वारा संग्रहित गीतों की पाडुलिपि (३) श्री श्याम परमार (नई दुनिया) २१-६-५३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org