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निमाड़ी भाषा और उसका क्षेत्र विस्तार
एक और गीत है:गुजराती
पान सरखी रे हूं तो पातलई रे, मने बीड़लो वालई लई जावऽरे । एलायची सरखी रे हूँ तो मधु मधु रे,
मने दाढ़ मां घाली ने लई जाव रे॥४ निमाड़ी
पान सरीखी पातलई रे, चोल ई मंऽ छिप जाय रे । इलायची, सरीखी महेकणई रे,
बटुवा मंऽ छिप जाय रे ॥५ साथ ही गुजराती और निमाड़ के इन शब्दों का साम्य भी देखिये ।
निमाड़ी स्यालो
शियालो उढालो
उनालो प्रांगणो
प्रांगणु मुक्को
मुक्की अंगलई
प्रांगली फलई
फली जाडो
जाडु घाघरो
घाघरो शहेर
शहेर महेल
महेल शेरी
गुजराती
हिन्दी अर्थ जाडा गरमी प्रांगन धूसा अंगुली
फली
मोटा लहंगा शहर महल गली
सेरी
निमाड़ी और मराठी
निमाड़ के दक्षिण में मराठी भाषी प्रान्त लगा होने से निमाड़ी में मराठी के भी कुछ शब्द आ मिले हैं, लेकिन इनकी संख्या इतनी कम रही है कि निमाड़ी भाषा सहज ही इन्हें आत्मसात् कर चुकी है। निमाड़ी में 'ल' की जगह 'ल' का प्रयोग भी मराठी से ही अश्या प्रतीत होता है । निमाड़ी और मालवी।
निमाड़ी और मालवी में जितना साम्य है उतना और किसी भाषा में नहीं है। जिस तरह इन दोनों भू-भागों की सीमा एक दूसरे से गले लिपटी हैं, उसी तरह यहां की भाषायें भी एक दूसरी से कुछ इस कंदर मिलती हैं मानों दो बहिनें परस्पर गले मिल रही हों।
(४) सम्मेलन पत्रिका, लोक संस्कृति अंक, संवत २०१० पृष्ठ १८६ (५) जब निमाड गाता है (रामनारायण उपाध्याय) पृष्ठ ६२ ।
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