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श्री रामनारायण उपाध्याय
से आत्मसात् हो चुकी है। लेकिन इसके नाम से इसके गुजरात से आने का पता चलता है । निमाड़ में 'नागर' जाति के भी गुजरात से सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं । निमाड़ में रहने वाली 'लाड़' जाति गुजरात में रहने वाले 'लाड़' लोगों से सम्बन्धित रही है । ये भी गुजरात से आये होंगे ऐसा प्रतीत होता है । राजपुर बड़वानी में 'मेघवाल' नामक एक जाति बसी है । यह यहां सौराष्ट्र से आकर बसी है । इनके रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि सब पर सौराष्ट्रीय संस्कृति श्राज भी विद्यमान है ।
गनगौर गीत में रनु के यहां सौराष्ट्र से प्राने का जिक्र है, देखिये गीत को
निमाड़ के एक पंक्तियां हैं
आई हो ।
अर्थ है - हे रनु तुम्हारे किन किन स्वरूपों का वर्णन किया जाये, तुम सौराष्ट्र देश से जो
थारो काई काई रूप बखाणू रनुबाई,
सोरठ देश से आई ओ 11
श्री डा० वासुदेवशरण अग्रवाल के मत से रादनी देवी की पूजा गुजरात सौराष्ट्र में भी प्रचलित थी । वहां उसकी चौदहवीं सदी तक की मूर्तियां पाई गई हैं । एक मूर्ति के लेख में उसे श्री सांबादित्य की देवी श्री रनादेवी कहा गया है । सौराष्ट्र के पोरबन्दर के समीप बगवादर और किन्दरखेड़ा में रन्नादेवी या रांदलदेवी के मंदिर हैं । वस्तुतः यह रादनी देवी गुप्तकाल से पहिले ईरानी शकों के साथ गुजरात-सौराष्ट्र में लाई गई थी जिसा कि निमाड़ी लोक गीत में कहा गया है गुजरात सौराष्ट्र में राणादे या रांदलमां की पूजा सन्तान प्राप्ति के लिये की जाती है । अर्वाचीन गुजराती साहित्य में भी रणादेव के भजन पाये जाते हैं । '
गुजराती की तरह ही निमाड़ी में भी निमाड़ी भाषियों की रेल में बातचीत सुनकर लगता है ।
निमाड़ी
देखिये निमाड़ी और गुजराती भाषा के निम्न दो लोक गीतों में कितना साम्य रहा हैः
गुजराती
" किया तो कुछ इस कदर प्रयोग में लाई जाती है कि दो अपरिचितों को उनके गुजराती भाषा होने का शक होने
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जी रे चांदों तो निर्मल नीर, तारो क्यारे ऊंगशे ।
ऊंगशे रे पाछली सी रात, मोतीड़ा घरणा भूल ॥ २
चन्द्रमा निरमई रात, तारो कवं जंगसे, तारो ऊंगसे पाछली रात, पड़ोसेण जागते | 3
(१) जनपद - बनारस (पृष्ठ ६१-६२ ता० १-१-५३ ) (२) व
( ३ ) निमाड़ी लोकगीत ( रामनारायण उपाध्याय) पृष्ठ ५६
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