________________
निमाडी भाषा और उसका क्षेत्र विस्तार
१७६
लक्षण-निमाड़ी में 'ल' की जगह 'ल' का उपयोग बहुतायत से होता है यथा 'माला -'माला', 'ताला'--'ताला', 'नाला'- 'नाला', 'काला' --'काला', केल–'केल', 'कोयल'--'कोयल' 'उजेला''अजालो' आदि ।
(१) 'है' की जगह गुजराती भाषा की 'छे' क्रिया का उपयोग अधिकतर होता है । यथा-क्या हैकाई छ ? कौन है = कुण छे ? कैसा है = कसो छ ?
इसमें न' शब्द जब प्रथमाक्षर के रूप में आता है तो यह बदल कर 'ल' हो जाता है और जब अन्तिम अक्षर के रूप में आता है तो वह बदल कर 'ण' हो जाता है । यथा-प्रथमाक्षर के रूप मेंनीम 'लीम' । नमक-'लोण' । निंबू-'लिंबू' । अन्तिम अक्षर के रूप में जैसे-बहन--'बहेण' । आंगन-- 'प्रांगणो' । जामुन-'जामुण' ।
(४) कर्मकारक की अभिव्यक्ति में 'को' के स्थान पर 'ख' का उपयोग होता है । यथा, मुझको'मखऽ' । तुमको–'तुमखऽ' । उनको-'उनखऽ' ।
(५) सहायक क्रिया में 'है' के स्थान पर 'ज' का उपयोग होता है । यथा, चलता है-'चलज्' । दौड़ता है-दौड़ज्' खाता है-'खावज्' ।
(६) इसमें कर्ताकारक की विभक्ति 'ने' के स्थान पर बहुधा 'न' का ओर बहुवचन में 'नन्' का उपयोग होता है । यथा, आदमी ने-'पादमीन' आदमियों ने-'प्रादमी नन' । पक्षी ने-'पक्षी नई' । पक्षियों ने-'पक्षीनन ।
(७) इसके सर्वनाम हैं-'हंऊ, तु और 'ऊ'।
क्रिया में, एक वचन में, तीनों कालों में जिसका स्वरूप होगावर्तमान काल-हऊ चलूज् । तू चलज् । ऊ चलज् । भूतकाल-हऊ चल्यों। तू चल्यो । ऊ चल्यो ।
भविष्यकाल-हऊ चलू गा। तू चलऽगा । ऊ चलऽगा ।
(८) इसके कुछ शब्दों में अनुस्वार का लोप हो जाता है । यथा, दांत-'दात' मां-'माय' । हंसना-'हसना ।'
सीमावर्ती भाषायें
उत्तर में मालवीय, पश्चिम में गुजराती, दक्षिण में खानदेशी और पूर्व में होशंगाबादी इसकी सीमावर्ती भाषायें रही हैं। शब्दों का आदान प्रदान किसी भी जीवित भाषा का लक्षण होता है। इस दृष्टि से जैसा कि सभी भाषाओं के साथ होता है, निमाड़ी पर भी उसकी सीमावर्ती भाषाओं का असर रहा है। निमाड़ी व गुजराती
निमाड़ के पश्चिम से गुजरात की सीमा लगी होने के कारण निमाड़ और गुजरात के बीच काफी सम्बन्ध रहे हैं । निमाड़ के ग्रामों में 'गुजराती' नामक एक खेतिहर जाति बसी है । यद्यपि यह अब निमाड़
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org