________________
महाकवि धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१०७
उद्देश्य स्वयं कवि ने इस प्रकार लिखा है-'समस्त वाङमय के ज्ञाता होने पर भी जिनागम में कही गई कथानों के जानने के उत्सुक, निर्दोष चरित वाले, सम्राट भोजराज के विनोदन के लिए, मैंने इस चमत्कार से परिपूर्ण रसों वाली कथा की रचना की। (तिलकमञ्जरी, पद्य नं० ५०)
कहा जाता है कि तिलकमञ्जरी की समाप्ति के पश्चात भोजराज ने स्वयं इस ग्रन्थ को प्राद्योपान्त पढ़ा । ग्रन्थ की अद्भुतता से प्रभावित होकर भोजराज ने धनपाल से यह इच्छा व्यक्त की कि उन्हें इस काव्य का नायक बना दिया जाय । इस कार्य के उपलक्ष में कवि को अपरिमित धनराशि उपहार में प्रदान किए जाने का आश्वासन भी दिया गया, किन्तु धनपाल ने ऐसा करने से अस्वीकार कर दिया । इस पर भोजराज अत्यन्त क्रुद्ध हो गए और तत्काल उन्होंने वह समस्त रचना अग्निदेव को भेंट कर दी। इस घटना से धनपाल अत्यन्त उद्विग्न हो गए। उनकी नौ वर्ष की बाल पण्डिता पुत्री ने उनके उद्वेग का कारण जानकर, उन्हें धीरज बन्धाया और तिलकमञ्जरी की मूलप्रति का स्मरण करके उसका आधा भाग पिता को मह से बोल कर लिखवा दिया। धनपाल ने शेष आधे भाग की पूनः रचना करके तिलकमञ्जरी को सम्पूर्ण किया।
____ यद्यपि समस्त कथा गद्य में कही गयी है किन्तु ग्रन्थ के प्रारम्भ में अनेक वृत्तों में ५३ पद्य हैं । इनमें मंगलाचरण, सज्जन स्तुति एवं दुर्जननिन्दा, कविवंश परिचय आदि उन सभी बातों का वर्णन है जिनका शास्त्रीय दृष्टि से गद्य काव्य के प्रारम्भ में वर्णन होना चाहिए ।२ इन पद्यों में धनपाल ने अपने प्राश्रयदाता सम्राट्, उनके परमार वंश और उनके पूर्वजों श्री बैरिसिंह, श्री हर्ष, सीयक, सिन्धुराज, वाक्पतिराज का भी वर्णन किया है।
तिलकमञ्जरी और कादम्बरी की तुलना-कादम्बरी तथा तिलकमञ्जरी में अनेक प्रकार से समानता है । सच बात तो यह है कि तिलकमञ्जरी की रचना ही कादम्बरी के अनुकरण पर है । तिलकमञ्जरी की कवि प्रशस्ति में जितना आदर धनपाल ने कादम्बरीकार बाण को दिया, उतना किसी अन्य दूसरे कवि को नहीं। अपने से पूर्ववर्ती प्रायः सभी कवियों का यशोगान, धनपाल ने एक एक पद्य में किया है किन्तु बाण का दो पद्यों में। (तिलकमञ्जरी पद्य नं० २६, २७)
शास्त्रीय दृष्टिकोण से तुलना करने पर दोनों कथाओं में अत्यधिक साम्य प्रतीत होता है। कवि कल्पित होने से कादम्बरी भी कथा है और तिलकमञ्जरी भी। जैसे कादम्बरी में मुक्तकादि चारों प्रकार की गद्य का प्रयोग होने पर भी 'उत्कलिकाप्राय' गद्य की बहुलता है उसी प्रकार तिलकमञ्जरी में भी।४
१-प्रबन्ध चिन्तामणि (धनपाल प्रबन्ध) २- 'कथायां सरसं वस्तु गद्यैरेव विनिर्मितम् । क्वचिदत्रभवेदार्ण क्वचिद् वक्त्रापवक्त्रके । पादौ पद्य नमस्कारः
खलादेवतकीर्तनम् । ........... ......कवेर्व शानु कीर्तनम् । अस्पामन्य क वीनां च वृत्त पद्य क्वचित्
क्वचित्' साहित्य दर्पण, ६,३३२-३३४ ३-'आरव्यापिकोपलब्धार्था प्रबन्ध कल्पना कथा' अमरकोश' । ४-'वृत्तगन्धोज्झित गद्य मुक्तकं वृत्तगन्धि च । भवेदुत्कालिकाप्रायं चर्णकञ्चचतुर्विधम् ।।
आद्य समासरहितं वृत्त भागयुतं परम् । अन्यद्दीर्घ समासाढ्यं तुर्यञ्चाल्पसमासकम् ।।' साहित्य दर्पण ६, ३३०, ३३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org