________________
१०८
-
डॉ. हरीन्द्र भूषण जैन
- कादम्बरी का नायक चन्द्रापीड, अनुकूल एवं धीरोदात्त है। तिलकमञ्जरी का नायक समरकेतु भी अनुकूल एवं धीरोदात्त है।' कादम्बरी की नायिका गन्धर्वो के कुल में उत्पन्न, कादम्बरी, विवाह के पहले परकीया एवं मुग्धा तथा विवाह के पश्चात् स्वकीया एवं मध्या है। इसी प्रकार तिलकमञ्जरी की नायिका विद्याधरी तिलकमञ्जरी पहले परकीया एवं मुग्धा तथा पश्चात् स्वकीया एवं मध्या है। कादम्बरी में, पूर्वाद्ध में तथा कुछ उत्तरार्द्ध में 'पूर्वराग विप्रलम्भ शृगार, तथा शेष उत्तरार्ध में करण विप्रलम्भ शृगार' प्रधान रस है। तिलकमञ्जरी में केवल 'पूर्वराग विप्रलम्भ शृगार' ही प्रधान रस है । कादम्बरी और तिलकमञ्जरी दोनों की पाञ्चाली रीति और माधुर्य गुण है ।
दोनों कथाओं का प्रारम्म पद्यों से होता है। इन पद्यों के विषय सज्जन-दुर्जन-स्तुति निन्दा, कविवंश वर्णन आदि भी समान हैं। इन पद्यों में बाण ने 'कथा' के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट किए हैं। धनपाल ने भी इन प्रारम्भिक पद्यों में गद्य, कथा और चम्पू के सम्बन्ध में अपनी धारणा स्पष्ट की है। दोनों कथानों में गद्य के बीच में कुछ पद्यों का प्रयोग किया गया है।४
कादम्बरी तथा तिलकमञ्जरी के कथानक में भी यत्र तत्र समानता दिखाई देती है। कादम्बरी में उज्जयिनी के राजा तारापीड़ और उनकी पत्नी विलासवती, नि:संतान होने के कारण अत्यन्त दुःखी हैं ।
१–'अनुकूल एकनिरतः'
'अविकत्थनः क्षमावानतिगम्भीरो महासत्त्वः । स्थे यान्निगूढमानो धीरोदात्तो दृढ़ व्रतः कथितः ।। २-कादम्बरी-कल्पलता टीका (हरिदास सिद्धान्त वागीश भट्टाचार्य) 'साहित्य दर्पण' का स्वरूपनायिकादि
निरूपण तथा तिलकमञ्जरी (पराग टीका) की प्रस्तावना । 'परकीया द्विधा प्रोक्ता परीढा कन्यका तथा । कन्या त्वजातोपयमा सलज्जा नवयौवना । प्रथमावतीर्ण यौवनमदनविकारा रतौ वामा। कथिता मृदुश्च माने समधिकलज्जावतो मुग्धा ।। परिणयात् परन्तु स्वकीया मध्या च मन्तव्या, 'साहित्य दर्पण' 'यत्र तु रतिः प्रकृष्टा नाभीष्ट मुपैति विप्रलम्भोऽसौ' .. . 'श्रवणाद्दर्शनादवापि मिथ: संरूढरागयोः । दशाविशेषो योऽप्रापौ पूर्वरागः स उच्यते ।' 'यूनो रेकतरस्मिन् गतवति लोकान्तरं पुनर्लभ्ये । विमनायते यदेकस्तदा भवेत् करूणविप्रलम्भाख्यः ।। चित्तद्रवी भावमयो ह्लादो माधुर्य मुच्यते'
'समस्तपञ्चषपदोबन्धो पाञ्चालिका मतां' साहित्य दर्पण ३-कादम्बरी पद्य नं० ८, ६ तथा तिलकमञ्जरी पद्य नं० १५, १६, १७, १८. . . ४-कादम्बरी-'स्ततम स्नात......'शुक प्रसंशा प्रकरण (पूर्वभाग-कथामुख),
_ 'दूरं मुम्तालतया ... ' मदनाकुलमहाश्वेतावस्था प्रकरण (पूर्वभाग-कथा) तिलक मंजरी-'यस्य दोष्णि स्फुरद्ध तो ......' 'लतावनपरिक्षिपे.. ....... .
1 मेघवाहन नृप वर्णन प्रसंग । 'अन्तर्दग्धागुरुशुचावाप.......' 'दृष्ट्या वरस्य वरस्य .... ' ', 'पाढ्यश्रोणिदरिद्रमध्यसरणि......' रानी मदिरावती का वर्णन ।।
'विपदिव विरता विभावरी.......' बंदिगान.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org