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सुवासित कुसुम
—साध्वी चन्दनप्रभा
मंजुल स्नेह देवि
वन्दन-अभिनन्दन । ----साध्वी दिव्यप्रभा, एम० ए, पी-एच० डी०
सागर-सम गम्भीर आप हैं
- नीर जैसा है निर्मल मन सत्य ज्ञान समुज्ज्वलता से
___ ज्योतित होता है अन्तस्तल चंचल मन की सुस्थिरता से
ध्यान-भाव में नित बहते ज्ञान-राशि के रत्न महोज्ज्वल
आत्म-भाव में नित रहते तत्व-बुद्धि को देख आपकी
मन हर्षित हो जाता है प्रतिभाधारी संयमी ज्ञानी
यशोगान मन गाता है वाणी-भाषा मधुर ओजस्वी
तेजस्वी मुख दर्पण है छल-प्रपंच से दूर बहुत ही ।
सरल आपका जीवन है अपनी अमृतमय वाणी से
सबका दुःख मिट भूले-भटके प्राणी जनों को
__आपने मार्ग दिखाया है जन्म ग्रहण करते पुरुषोत्तम
जग का दुःख मिटाने को मौर्य निशाचर दूर भगाते
ज्ञान-ज्योति प्रगटाने को सौरभ फैली जग में आपकी
___जैसे महके चन्दन है दीक्षा स्वर्ण जयन्ती पर तो
वन्दन शत, अभिनन्दन है !
आ आराधना के आराध्य ६ ध्यान की निष्कम्प ज्योति या याज्या ज्यों निर्मल र त्याग की साकार प्रतिमा म मही सम सहिष्णुता यो योगिनी है तन व मन से गि गिरि सम अडोल
नी नीलगगन ज्यों विशाल का काया तक का है नहीं मोह श शतपत्र की भाँति निर्लेप मी मीत तुम सबके बने र रहा न तुमसे कोई प्यारा प्र प्रदीप्त कर जीवन बनाया चा चारु और नयनाभिराम रि रिद्धि तुम्हारे कदम चूमे
का कामना इर्द-गिर्द घूमे म महिमा मण्डित तम-अर्चे कैसे हा हाला पी हम ज्यों हैं बेभान स सहज श्रद्धा भक्ति के वश है ती तीव्र तमन्ना गाए गान
'कुसुम' अपनी सुरभि से सुरभित करती हर डग को मंजुल स्नेह देवी! वन्दन अभिनन्दन शत बार तीनों लोकों में हो जयकार जोयो तुम तो वर्ष हजार
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना !
5 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ