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रहे हैं ? सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ही व्यतीत तुम हो कमल कुसुम, सुगंध से परिपूर्ण। होता रहा आपका संयमी जीवन का हर क्षण हर तुम्हारी गुणमरिमा देख, बलि-बलि जाऊँ। पल ।
यद्यपि आप से प्रत्यक्ष परिचय दर्शन का मौका (6) ___ मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि मुझे नहीं मिल पाया, तथापि आपकी सुशिष्या 17 श्रद्ध या महासती जी के दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के चारित्रप्रभाजी आदि से आपके जीवन-दर्शन, उपलक्ष में एक गौरव ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा व्यक्तित्व कृतित्व से बहत कुछ जानने को प्राप्त हुआ। है, यह कार्य स्तुत्य है । हार्दिक साधुवाद की पात्र है है । मैं साधिकार कह सकती हूँ कि आपश्री ने सन्त, स्नेहशीला साध्वीरत्न दिव्य प्रभाजी महाराज साधु, संन्यासी, भिक्ष एवं मुनि शब्द को अपने जिन्होंने इस विराट आयोजन का उपक्रम किया। जीवन में आत्मसात् किया है। अन्त में आराध्य देव से यही कामना करती हूँ सन्त अर्थात् जो शान्त जीवन जीता है, निर्भय
यू' हों .."लम्बे समय तक आपका होकर सम भाव में स्थिर रहकर मदैव सत् की सान्निध्य संघ समाज को प्राप्त हो एवं हम सबको गवेषणा करता है। आपकी दीक्षा शताब्दी मनाने का सौभाग्य मिले। साधु अर्थात् “साधयति स्व पर कार्याणि इति इसी अक्षय आशा के साथ
साधु" जो स्व पर कार्य में-आत्मोत्थान में सदा हे ज्योति धरा ! हे ज्योति पुंज !
निमग्न रहता हो। लो हार्दिक अभिनन्दन !
___संन्यासी अर्थात् जो स्वयं के लिए कुछ भी न युग-युग ज्योतित करो धरा को,
रखते हए अपने जीवन को देश धर्म व समाज चरणों में शतशत वन्दन !
कल्याण के लिए लगा देता हो।
भिक्षु का अर्थ है-जो अहंकार का त्याग कर पुष्कर तीर्थ के कमल-कुसुम
ऊँच-नीच कुल में समान रूपेण भ्रमण कर स्वल्पा
हार की गवेषणा करते हैं । -साध्वी संघमित्रा जी
मुनि अर्थात् जो वचन गुप्ति के पालन में सदैव मुझे यह जानकर हादिक प्रसन्नता हई है कि जागरूक रहते हुए हित, मित व इष्ट वाणी का स्थानकवासी जैन समाज की विदूषी साध्वी श्री प्रयोग करता है। कुसुमवती जी म० का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित आपके जीवन में संयम की शुद्धि के साथ साथ ( हो रहा है। महान आत्माओं का जीवन तिन्नाणं- मन की विशुद्धि भी है । इसलिए आप मात्र कुसुम तारयाणं का प्रतीक रहा है, उनका जीवन दीपक- ही नहीं कमल कुसुम हैं. कमल के समान उज्ज्वल वत् है जो स्वयं भी प्रकाशित है और चहुँ ओर ही नहीं, संसार रूपी कीचड़ से निर्लेप भी हैं। प्रकाश फैलाता रहता है।
__ऐसे विराट व्यक्तित्व व कृतित्व के धनी महासती ____ आपके सम्बन्ध में कुछ लिखना सूर्य को दीपक जी के इस दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन अवसर है दिखाना है फिर भी अपनी भावना को चन्द शब्दों पर मैं अपनी व अपने साध्वी परिवार की ओर से द्वारा व्यक्त करने का प्रयास कर रही हूँ। आपका शतशत अभिनन्दन करती हुई यही मंगल
तुम्हारी गौरव गाथा को कैसे मैं गाऊँ ? कामनाएँ करती हूँ कि आप दीर्घायु बनकर तुम्हारे चरण सरोज में स्थान कैसे पाऊँ ? हमें सदा मार्ग दर्शन प्रदान करती रहें।
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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