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किया तो गर्मी के दिनों मई माह में भी आंधी तूफान वर्षा, बर्फ स्खलन होने लगा । ज्यों-ज्यों आगे बढ़ने लगे त्यों-त्यों प्रकृति रास्ता रोक रही थी । श्रावकजन कहने लगे - इस समय तो भयंकर गर्मी होने लगती है, इन दिनों कभी बर्फ नहीं पड़ती है, परन्तु इस बार तो वर्षा हो रही है बर्फ गिर रही है और शीत बढ़ा हुआ है, ऐसी स्थिति में आप कैसे जायेंगे ? गृहस्थ लोगों के पास सब साधन होते हैं फिर भी कश्मीर का ठण्डा मौसम बहुत असहनीय होता है, फिर आपके पास तो ओढ़ने-बिछाने के साधन भी अत्यल्प हैं/सीमित हैं । गुरुणी महाराज इन सब की परवाह किये बगैर चलते चले । प्रतिकूल परिस्थितियों में भी चलते रहे । आधा रास्ता पार हुआ, आखिर प्रकृति को भी बदलना पड़ा । प्रकृति भी अनुकूल हो गई। आंधी, तूफान, वर्षा, बर्फ ब रुक गये । चारों ओर रमणीय दृश्य दिखाई देने लगते । पहाड़ों पर जमा बर्फ चमकता हुआ दिखाई देता था । लोग कहते - आपको दिखाने के लिए ही प्रकृति ने यह दृश्य इस माह में भी उपस्थित किया है।
संकट एवं बाधाएँ तो आती ही हैं लेकिन कर्मठ व्यक्तियों के सामने स्वयं निरस्त हो जाती हैं और उनका पथ प्रशस्त एवं निर्विघ्न हो जाता है कहा भी है
बहादुर कब किसी का आसरा अहसान लेता है । उसी को कर गुजरता है जो दिल में ठान लेता है ।
निरुत्साही व्यक्ति किसी कार्य को प्रारम्भ ही नहीं करते हैं और कुछ लोग करते भी हैं तो विघ्न बाधाएँ आने पर बीच में ही छोड़ देते हैं, लेकिन जो महान् होते हैं वे प्रारम्भ किये कार्य को करके ही दम लेते हैं ।
गुरुणीजी महाराज की यह विशेषता है कि प्रण के पक्के हैं जिस कार्य को करने का निर्णय लेते हैं उस कार्य को सम्पन्न करके ही विराम लेते हैं । विद्वान होते हुए भी आप अत्यन्त नम्र है, अहं
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ने आपको छुआ ही नहीं है । आप करुगा की महादेवी हैं तो सरलता की प्रतिमूर्ति हैं । समन्वय की साधिका हैं। आपका अन्तःकरण अत्यन्त निर्मल एवं पवित्र है ।
आपकी प्रवचन शैली चित्ताकर्षक व अनूठी है । आपके हृदय से निकली वाक्धारा श्रोताओं के अन्तर् तक पहुँचती है । मेरा परम सौभाग्य है कि दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के इस पावन अवसर पर मुझे भी श्रद्धा के दो पुष्प अर्पित करने का अवसर मिला है। अन्त में यही मंगल कामना करती हुई अपनी लेखनी को विराम देती हूँ कि आपका आशीर्वाद व आपकी छत्रछाया मुझ पर सदा बनी रहे ।
श्रमणी उपवन का दिव्य 'कुसुम'
- साध्वी अक्षय ज्योति 'साहित्यरत्न'
इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों का जब मैंने अवलोकन किया तो एक सुखद गौरव गरिमा से मेरा अन्तस्तल खिल उठा ? क्योंकि जैन परम्परा में श्रमण की तरह श्रमणी परम्परा का भी शीर्ष स्थान है ।
आदि युग 'से लेकर आधुनिक युग तक एक नहीं अनेक तेजस्वी श्रमणियाँ हुई हैं जिन्होंने अपनी अनूठी आन, बान और शान से अपनी कीर्ति कौमुदी को विश्व में चमकाया |
उसी श्रमणी उपवन का एक महकता दिव्य कुसुम है- साध्वीरत्न, सरलमना महासती श्री कुसुमवती जो म० सा० जिनका व्यक्तित्व - कृतित्व अनुपम है । सरलता, सहजता, मृदुता, विनम्रता, कोमलता आदि अनेक सद्गुण पुष्पों से पुष्पित एवं सुरभित है आपका जोवन उपवन ।
आपका साधना काल सुदीर्घ है । महासती जी संयमी जीवन के ५०वें बसन्त में प्रवेश कर रही हैं । इतने अधिक वर्ष के बसन्त यथार्थ बसन्त ही
प्रथम खण्ड : श्रद्धाचना
साध्वीरत्न ग्रन्थ
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