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(:) परिशिष्ट (:)
अभिनन्दन-ग्रन्थ में परिशिष्ट की परम्परा भले ही नवीन हो, किन्तु इसकी एक अपनी उपयोगिता/अनिवार्यता है। गुजराती में इसे पूरवणी कहते हैं। कुछ महत्वपूर्ण लेख जो ग्रन्थ छपते-छपते प्राप्त हुए, वे अपने खण्ड गत विषय के साथ समाविष्ट नहीं हो सके, किन्तु उनकी उपयोगिता थी, अत: इन लेखों को परिशिष्ट में संकलित किया गया है। सम्वन्धित विद्वान लेखक. इसमें किसी प्रकार अन्यथा भाव नहीं लेंगे, ऐसा विश्वास है।
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