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'श्री कुसुमाष्टकम्
हे साधिके ! अभिनन्दन
श्री सुकनमल जी म० सा०
--सुभाष मुनि 'सुमन' (श्रमण संघीय सलाहकार उपप्रवर्तक)
संयम पथ की हे ! साधिके अहंत धर्म आराधना, आतम गुण आधार तेरा जीवन निर्मल है धारण कर उर धैर्यता, भव जल उतरे पार
अन्तर् तेरा मां-गंगा सा
अनुपम पावन निश्छल है। संयम गुण है शाश्वता, शारद मुख सरसाय अहो 'शुकन' संसार में, संयम संत सुहाय
यथानाम तथागुण पूरण अमरसिंह मुनि गच्छपति, श्रमणी संघ विशाल
'कुसुम' है श्री कुसुमवती सोहन, सोहन सारिसा, शासन दीप मिशाल
कई भाषा का ज्ञान जिन्हें है ।
तप संयम की ज्योति सती। सोहन बाग कुसुम खिले, संयम साधना साध गुरु पुष्कर नामी मिले, तप जल लेय आराध सरल, सौम्यता और करुणा
जीवन का शृंगार बनाया परम-विदुषी साध्वी, गौरव संघ सवाय
"मित्ति मे सव्व भूएसु' का कुसुमवतीजी महासती, अभिनन्दन जग मांय
घर-घर में जयघोष गुंजाया। सदा साध्वी सरलमना, मधुर वचन सुविशाल विनय, विवेक विद्यागुणी, आगम ज्ञान कमाल
लघुवय में लेकर के दीक्षा
किया है जीवन को पावन कुसुम-कुसुम पर देखिये, शिष्या भ्रमर गुंजाय
नाम दिपाया मात-तात का सरस सिंगाड़ा सोहता, अमर-गच्द्ध के मांय
किया है उज्ज्वल जिन-शासन मेद-पाट मरु, मालवा, उत्तर-भारत माँय।
अभिनन्दन की इस बेला में धर्म-प्रचार नीको करि, विचरत आनन्द मांय ।
___ शतायु की शुभभावना है निर्मल हो जिन पथ बढ़ो, शकुन सिद्धि मिल जाय सदा सफल हो संयम पथ में अभिनन्दन जन-गण करे, श्रद्धा कुसुम चढ़ाय यही हृदय की कामना है।
-: :जहा दीवा दीवसयं पइप्पए सो य दीप्पए दीवो । दीवसमा आयरिया अप्पं च परं च दीवंति ।
-उत्तराध्ययन नियुक्ति ८१ जिस प्रकार प्रकाशमान दीप अपने प्रकाश-स्पर्श से अनेक दीपक जला देता है, वैसे ही ज्ञानवान सद्गरु (आचार्य) अपनी ज्ञान ज्योति से अन्य सैकड़ों जनों को प्रकाशमान करते हैं।
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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