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दोक्षा स्वर्ण जयंती (पच्चीसी) -उपप्रवर्तक श्री चन्दनमुनि जी म.
(पंजाबी)
दीक्षा स्वर्ण जयन्ती जिनकी आई मंगलकारी है महासती श्री कुसुमवती की महिमा जग में भारी है ॥१॥
दौड़ी-दौड़ी दूर-दूर से दुनिया इतनी आई थी कहते हैं तिल धरने को भी जगह नहीं बच पाई थी ॥७॥
ज्ञानी ध्यानी बन व्याख्यानी जिनने धाक जमाई थी सोहन कंवर सती प्रवर्तिनी पूज्या गुरुणी पाई थी ॥८॥
सोमवार छठ आश्विन कृष्णा उगनी सौ बयासी वर्ष नगर उदयपुर ओसवाल कुल
में था छाया भारी हर्ष ॥२॥ GN पिता गणेशलाल कोठारी S बहुत बड़े व्यापारी थे
| दया धर्म के धारी थे तो E पावन प्रेम पुजारी थे ॥३॥
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उपाध्याय 'मुनि पुष्कर' जिनकी महिमा का न कोई पार मिले आपको गुरुवर ज्ञानी पूरे - पूरे गुण भण्डार ॥६॥
'नजरकंवर' शुभ नाम जन्म का जाने जनता सारी है 'कुसुमवती' पर नाम नव्य क्या केसर की ही क्यारी है ॥१०॥
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माता 'श्री कैलाशकंवर' ने मन वैराग बसाया था आगे जाकर जग ठुकराकर महासती-पद पाया था ॥४॥
उन्नीस सौ तिरानवें फागुण सुदी दश आया जब रविवार मुदित 'देलवाड़ा' में दीक्षा in करी 'कुसुम' ने भी स्वीकार ॥५॥
हिन्दी संस्कृत, प्राकृत, आगम आदिक में निष्णात हुये एक नम्बर व्याख्याता बनकर बहुत-बहुत विख्यात हुये ॥११॥
दृश्य निराला दीक्षा वाला कैसे भूलें दर्शक-गण याद यदा आ जाता है, हो जाता है रोमांचित तन ॥६॥
अंधी क्रिया ज्ञान बिन मानी बिना क्रिया के लंगड़ा ज्ञान समाधान यूत भाषण करके जन-गण का करते कल्याण ।।१२।।
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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