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अन्तर हृदय का अभिनन्दन __साध्वीरत्नाश्री श्री कुसुमवती जी -श्री रतन मुनि जी
-श्री गिरीश मुनिजी (श्रमण संघीय सलाहकार) जैन धर्म आत्मवादी धर्म है। साधक धर्म के (0)
द्वार पर प्रवेश करता हआ आत्मा की अगाध शक्ति मुझे यह जानकर परम आल्हाद हुआ कि का परिचय प्राप्त कर सकता है। साधना के प्रशांतमना विदूषी साध्वी श्री कुसुमवतीजी म. अपनी आधार पर साधक अपने लक्ष्य-साध्य को सिद्ध कर साधना काल के पचास बसन्त प्रशस्त रूप से शासन आत्मविजयी बन सकता है। सेवा करते हुए सफलतापूर्वक सम्पन्न कर रहे हैं, यह
. जैन धर्म में चार प्रकार के साधक हैं-साधु, प्रसन्नता का विषय है।
साध्वियाँ, श्रावक और श्राविकाएँ।
समाज का परम सौभाग्य है कि परम विदुषी ___ ज्ञान, ध्यान, तपाराधना-ऐसे विशिष्ट गुण
कुसुमवती जी म. साध्वियों में रत्न के समान चमक हैं जिसके द्वारा साधक परितः पूजा जाता है, एवं
रही हैं। अतः वे साध्वीरत्ना है। वे दीक्षा के ५० आदर प्राप्त करता है । आपके इन चारित्रिक गुणों ने जन मानस की श्रद्धा को अपनी ओर आकर्षित
वर्ष पार कर चुकी हैं। अतः वे स्थविरा भी हैं । वे
अनेक भाषाओं का अध्ययन कर सब भाषाओं के किया है, तथा अपने प्रभाव को अभिवृद्ध किया है।
माध्यम से अनेक कोटि के साहित्य में प्रवेश कर आपका अभिनन्दन चारित्र का अभिनन्दन है, गुणों की समुदारता का सुन्दर प्रयास है । आचार्य श्री
सकी हैं अतः वे अनेक भाषाविद् होते हुए साहित्य आनन्द ऋषि जी म. सा. के साथ राजस्थान में
चंद्र भी हैं।
'विहार चरिया मुणिणं पसत्था' इस उक्ति को विहार यात्रा के दौरान भीलवाडा शहर में साध्वी
चरितार्थ करने के लिये सुदूर विहारिणी बन चुकी जी से मिलने का अवसर प्राप्त हआ। साध्वी श्री कुसुमवती जी एक परम विदुषी साध्वीरत्न हैं,
हैं। अतः वे भारत के महाविचरणशील पदयात्री - जो सदा-सर्वदा निस्पृह और निरपेक्ष भाव से ।
भी हैं। | साधना के महापथ पर अविराम गति से मुस्तैदी
शासन देव से ऐसी प्रार्थना है कि अनेक गुण कदम बढ़ाती रही हैं। आपने न्याय, व्याकरण,
सम्पन्ना सती साध्वीजी कुसुमवतीजी दीक्षा शताब्दी काव्य, आगम आदि का गहन अभ्यास कर जीवन
__ को शीघ्र ही पार कर सकें। को चमकाया है, ऋजुता-समता एवं कथनी-करनी
दो मुक्तक की एकरूपता आपकी सहज वृत्ति है, वस्तुतः गुण ___ -पं. उदय मुनि, (जैन सिद्धान्ताचार्य) 0 गम्भीर एवं शान्त प्रकृति की साध्वीरत्ना कुसुम- माता कैलाश सूता श्री सोहन की शिष्या है, 7) वतीजी, मानव समाज की गौरव हैं । मैं अभिनन्दन गरु पुष्कर का पा उपदेश अल्पवय में ली दीक्षा है। | की इस मंगल वेला में अभिनन्दन करते हुए पू० किया बह अध्ययन विहार किया धर्म हित 'उदय', साध्वी जी म० दीर्घायु होकर जीवनसाधना को धार संयम 'कुसूम' ने जग को धर्म को दी शिक्षा है ।। अभिवृद्ध करती रहें यही शुभेच्छा है।
दिनकर किरणें सारे जग को आलोकित करती हैं, गंध फूल की हर-एक को आकर्षित करती है। ) जो देता जग को वही महान होता 'उदय', ) दे धर्म देशना 'कुसुम' जीवन सार्थक करती हैं ।।
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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