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COAC श्री सौभाग्य मुनिजी 'कुमुद' (श्रमण संघीय महामन्त्री)
भगवती सूत्र में परामनोविज्ञान एवं पराशक्तियों के तत्त्व
मानव मन ज्ञात, अज्ञात, असंख्य अनन्त संवेद- मानस अध्ययन का क्रम भी वहाँ प्रचलित हुआ नाओं का समूह-सा है, प्रतिक्षण उसमें संवेदना तरंग और मानवीय सभ्यता के चरम विकास में यह भी तरंगित होती रहती है । हम प्रत्यक्ष में जो अनुभव अपनी चरम योग्यता के साथ उपस्थित रहा। करते हैं वह मानसिक संवेदनाओं का ही प्राकट्य
शास्त्र, ग्रन्थ, शिलालेख एवं पुरातत्व से सम्ब- का है। किन्तु यह तो उसकी अनुभवित संवेदनाओं का वित वस्तओं से हमें अपनी प्राचीन सभ्यताओं के RAVI न्यनातिन्यन भाग है। जो अप्रकट तथा असवित् प्रमाण मिलते हैं। श्रीमद भगवती सुत्र श्रमण है, वह तो अपार है।
संस्कृति का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ-राज है । भगवान् विश्व में अनेक प्राकृत रचनाएँ बड़ी जटिल हैं महावीर द्वारा.प्ररूपित तत्व जो सुधर्म स्वामी के द्वारा जिन्हें समझना मानव के लिए बड़ा कठिन है। उन सूत्रित किये गये हैं। इसमें बड़ी संख्या में उपलब्ध सभी दुरूह जटिल रचनाओं में मानव का मन है। जीव और जगत सम्बन्धी हजारों विषयों पर जटिलतम पदार्थ है इसका अध्ययन कठिन ही नहीं कहीं संक्षिप्त, कहीं विस्तृत प्रकाश डाला गया है कठिनतम है।
यही कारण है कि जैन वाङमय में इस ग्रन्थ-राज । मनोविज्ञान. मानसविज्ञान, लेश्या अंकन मन- का अप्रतिम स्थान है। संवित, संज्ञासंज्ञान ये सारे शब्द व्याख्या की कुछ- प्रश्न और उत्तर के रूप में हजारों प्रज्ञप्तियाँ कुछ भिन्नता के साथ एक ही विषय को अभिव्यक्त इसमें संकलित हैं। इस सूत्र-राज में परामनोविज्ञान करते हैं।
से सम्बन्धित अनेक ऐसे संकेत सूत्र और व्याख्या मानव मन की जटिलतम गुत्थी को ज्यों-ज्यों सूत्र है, जिनका आधुनिक शैली से विश्लेषण करने सुलझाया गया, प्रायः देखा गया है कि उसके आर- से परामनोविज्ञान के अनेक तथ्य उद्घाटित हो पार अनेकानेक नवीन विशेषताएँ उदघटित होती सकते हैं । इस क्षेत्र के विद्वानों का इस तरफ ध्यान रहीं । अपरा-परा अनेक शक्तियों का उसमें खजाना
आकर्षित करने के लिए यहाँ हम उन संकेत सूत्रों खुलता गया।
में से कतिपय सूत्र उपस्थित करते हैं । मानस की परा-अपरा शक्तियों को समझने
परभविक ज्ञान परखने और उन्हें उद्घाटित करने का प्रयत्न वैज्ञा- १-गौतम स्वामी भगवान् महावीर से एक निक युग में ही सम्भव हो सका, ऐसा सोचना कूप- बार प्रश्न करते हैं कि प्रभु ! ज्ञान इहभविक है, मंडकता होगी। भारत ही नहीं विश्व-भर में जहाँ- परभविक है, या तदुभयभविक है ? जहाँ मानवीय सभ्यता का तनिक भी उत्थान हुआ उत्तर में भगवान महावीर कहते हैं कि ३७८
पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास |
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 60
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