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विचार ज्ञान पद्धतियों एवं तकनीकों का व्यावहारिक जम्बूद्वीप तीनों संस्कृतियों में स्वीकार किया H उपयोग ही व्यावहारिक भूगोल है।"
गया है। भले ही उसकी सीमा के विषय में विवाद 12 इस परिभाषा से यह स्पष्ट है कि व्यावहारिक रहा है । जैन संस्कृति में तो इसका वर्णन कितने । भूगोल का उपयोग समाज के हित के लिए किया अधिक विस्तार से मिलता है जितना जैनेतर * १ जाता है और इसीलिए इसके अध्ययन की परिधि साहित्य में नहीं मिलता। पर्वत, गुफा, नदी, वृक्ष, 720
में मानव, स्थान तथा संसाधन का अध्ययन आता अरण्य, देश, नगर आदि का वर्णन पाठक को हैरान है। इसे हम निम्नलिखित वर्गीकरण के माध्यम से । कर देता है। इसका प्रथम वर्णन ठाणांग और समसमझ सकते हैं
__ वायांग में मिलता है। इन दोनों ग्रन्थों के आधार | १. भौतिक अध्ययन-भ-आकृति, जलवाय. पर जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति और चन्द्र प्रज्ञप्ति समुद्री विज्ञान आदि इसके अन्तर्गत आता है।
की रचना हुई है। इन सभी ग्रन्थों को हम लगभग २. आर्थिक अध्ययन-इसमें कृषि, औद्योगिक,
५वीं शताब्दी की रचना कह सकते हैं। आचार्य
यतिवृषभ की तिलोयपण्णत्ति भी इसी समय के व्यापार, यातायात, पर्यटन आता है।
आसपास की रचना होनी चाहिए। श्री पं० फूल३. सामाजिक, सांस्कृतिक अध्ययन-इसमें
चन्द सिद्धान्तशास्त्री इस रचना को वि. सं. ८७३ जनसंख्या, अधिवास, बस्ती, नगरीय, राजनीतिक, के बाद की रचना मानते हैं. जबकि श्री पं० जगलप्रादेशिक, सैनिक आदि का अध्ययन होता है।
किशोर मुख्तार उसे ईसवी सन् के आसपास रखने ४. अन्य शाखाएँ-जीव (वनस्पति), चिकित्सा, का प्रयत्न करते हैं। मौन चित्रकला आदि का अध्ययन होता है।
जम्बूद्वीप जैन संस्कृति में समस्त पृथ्वी अर्थात् जैन भूगोल यद्यपि पौराणिकता को लिए हुए मध्यलोक का नामांतरण है जिसे सात क्षेत्रों में है, फिर भी उसका यदि हम वर्गीकरण करें तो हम विभक्त किया गया है। इसके सारे सन्दर्भो को व्यावहारिक भूगोल के उपयुक्त अध्ययन प्रकरणों रखने की यहाँ आवश्यकता नहीं है, पर इतना ) से सम्बद्ध सामग्री को आसानी से खोज सकते हैं। अवश्य है कि पर्वत, नदी, नगर, आदि की जो इस दृष्टि से यह एक स्वतन्त्र शोध प्रबन्ध का स्थितियाँ करणानुयोग में वर्णित हैं उन्हें आधुनिक विषय है।
भूगोल के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयत्न किया | जैसा हमने पहले कहा है जैन भूगोल प्रश्न- जाए । उदाहरण के तौर पर जम्बूद्वीप को यूरेशिया कट चिन्हों से दब गया है। आधुनिक भूगोल से वह खण्ड से यदि पहचाना जाए तो शायद उसकी | निश्चित ही समग्र रूप से मेल नहीं खाता, इसका अवस्थिति किसी सीमा तक स्वीकार की जा सकती ) तात्पर्य यह नहीं कि जैन भूगोल का समूचा विषय है। इसी तरह सुमेरु को पामेर की पर्वत श्रेणियों - अध्ययन और उपयोगिता के बाहर है । इस परि- के साथ किसी सीमा तक रखा जा सकता है। स्थिति में हमारा अध्ययन वस्तुपरकता की मांग ।
हिमवान को हिमालय, निषध को हिन्दुकुश, नील करता है। आगमिक श्रद्धा को वैज्ञानिक अन्वेषणों को अलाई नाम, शिखरी को सायान से मिलाया 10) के साथ यदि हम पूरी तरह से न जोड़ें और तब जा सकता है । रम्यक की मध्य एशिया या दक्षिणी तक रुक जाएँ, जब तक उन्हें वैज्ञानिक स्वीकार न पश्चिमी की सीक्यांग से, हैरण्यवत् की उत्तरी ) कर लें तो हम उन्मुक्त मन से दोनों पहलुओं को सीक्यांग से, उत्तरकुरु की रूस तथा साइबेरिया से 10 और उनके आयामों को अपने परिधि के भीतर रख सकते हैं।
(शेष पृष्ठ ३८२ पर)
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पंचम खण्ड : जन साहित्य और इतिहास
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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