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बहुमुखी प्रतिभा की धनी
सन् १६३७ का वर्षावास मनमाड़ (महा० ) में था । उस समय मैं संस्कृत साहित्य का गहराई से अध्ययन कर रहा था और परीक्षाएँ भी दे रहा था | व्याकरण साहित्य के अध्ययन, चिन्तन और मनन से मुझे यह अनुभूति हुई कि श्रमण और श्रमणियों को अध्ययन के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए । क्योंकि बिना अध्ययन के आगमों के रहस्य हस्तगत नहीं होते और बिना अध्ययन के चिन्तन भी प्रस्फुटित नहीं होता । हमारे समाज में अनेक प्रतिभाएँ हैं । यदि उन्हें अध्ययन कराया जाय तो वे समाज के लिए वरदान रूप हो सकती है ।
मनमाड़ से विहार कर श्रद्ध ेय गुरुदेव महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज मालव की पावन पुण्यधरा में धर्म की अखण्ड ज्योति प्रज्वलित कर वीर प्रसव भूमि मेवाड़ में पधारे । चिरकाल के पश्चात् मेवाड़ में पधारते ही भावुक भक्तों की भीड़ बरसाती नदी की तरह उमड़ पड़ी। सभी के हृदय कमल खिल उठे और मन-मयूर नाचने लगे । श्रद्धेय गुरुदेव मेवाड़ के विविध ग्रामों में जागृति का शंखनाद फूंकते हुए उदयपुर पधारे । उदयपुर में हमारी भूतपूर्व सम्प्रदाय की परम विदुषी साध्वीरत्न मदन कुँवरजी महाराज सकारण स्थानापन्न विराज रही थीं । उनकी सेवा में अध्यात्मयोगिनी प्रतिभामूर्ति महासती श्री सोहन कुँवरजी महाराज विराज रही थीं । सोहन कुँवरजी महाराज तपो
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- उपाध्याय पुष्कर मुनि
मूर्ति थीं जिनके जीवन के कण-कण में, मन के अणुअणु में वैराग्य का पयोधि उछालें मार रहा था । जिनकी प्रतापपूर्ण प्रतिभा के सामने अनेक सन्तों की प्रतिभाएँ भी फीकी सी थीं । जिन्होंने अपने तेजस्वी व्यक्तित्व और अद्भुत कृतित्व से उदयपुर के नागरिकों में दृढ़ श्रद्धा उत्पन्न की थी । सम्प्रदायवाद के उस गढ़ में भी सम्प्रदायवादियों के द्वारा भी महासती मदन कुँवरजी और महासती सोहन कुँवरजी के उत्कृष्ट चारित्र की प्रशंसा सुनकर हृदय झूमने
लगता था ।
मध्याह्न का समय था । महासती सोहनकुँवर जी अनेक सतियों के साथ दर्शनार्थ उपस्थित हुईं। उनके साथ उस समय दो लघु साध्वियाँ भी थीं । दोनों लघु साध्वियों का परिचय प्रदान करते हुए महासती जी ने गुरुदेव से निवेदन किया कि इनका नाम कुसुमवती है। देलवाड़ा निवासी गणेशलाल जी कोठारी की यह सुपुत्री है । इनका संसार अवस्था में नाम नजर कुमारी था । इसने अपनी माता सोहनबाई के साथ सन् १६३६ में मेरे पास दीक्षा ग्रहण की। माँ का नाम साध्वी कैलाश कुँवर है और इसका नाम कुसुमवती रखा गया है । और दूसरी महासती का नाम पुष्पवती है । यह उदयपुर के ही निवासी जीवनसिंह जी बरड़िया की सुपुत्री है। इनकी माताजी तीजकुँवर और इनका लघुभ्राता धन्नालाल दोनों की भावना भी आर्हती दीक्षा प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
Jain Education Internations) साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ