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A का उपयोग नहीं कर सकता, या अपने को पहचान भी २८ वर्थ की अवस्था में गृहत्याग कर यौवन
नहीं पाता, वह जीवन की बाजी हार जाता है। को तपाते हैं और बुद्धत्व प्राप्त करते हैं । सिकन्दर, इसलिए यौवन का क्षण-क्षण, एक-एक पल कीमती चन्द्रगुप्त, अशोक, गाँधी, नेहरू, मार्क्स, लेनिन, है, इसको व्यर्थ मत जाने दीजिए सिर्फ कल्पना या चचिल, रूजवेल्ट, सभी का इतिहास उठा कर देख स्वप्न देखना छोड़कर निर्माण में जुट जाइए। लीजिए । २५ से ४५ वर्ष का जीवनकाल ही सबके उत्साह : यौवन की पहचान है
अभ्युदय और सफलता का महान समय रहा है। हा मैं एक युवक सम्मेलन में उपस्थित हुआ था,
___ आयु का यही वह समय है, जब मनुष्य कोई महान " सैंकड़ों युवक बाहर से आये थे, स्थानीय कार्यकर्ता
। कार्य कर सकता है, अथक परिश्रम व कष्ट सहने ने युवकों का परिचय कराया, तो एक युवक को ।
। की क्षमता, आपत्तियों का मुकाबला करने की
शक्ति, संघर्ष की अदम्य चेतना यौवन काल में ही सामने लाकर बोले-महाराज साहब, यह हमारे दीप्त रहती है । यौवन में न केवल भुजाओं में बल गाँव का उत्साही युवक है।।
रहता है, किन्तु सभी मानसिक शक्तियाँ भी पूर्ण मैंने उसे गौर से देखा, और सोचा-"उत्साही जागृत और पूर्ण स्फूर्तियुक्त रहती हैं, उनमें ऊर्जा द युवक", इसका क्या मतलब ? उत्साह तो युवक भी भरपूर रहती है और ऊष्मा भी। इसलिए सफ
की पहचान है, उत्साह युवक का पर्याय है, जिस लता का यह स्वर्ण काल कहा जा सकता है । नवपानी में तरलता व चंचलता नहीं, वह पानी ही सर्जना का यह बसन्त और श्रावण मास माना जा नहीं, जिस घोड़े में स्फूर्ति नहीं, तेजी नहीं, वह सकता है । भगवान् महावीर ने इसे ही जीवन का
मरियल टट्टू कोई "अश्व" होता है ? इसी प्रकार मध्यकाल कहा है । * जिस युवक में उत्साह नहीं, वह कोई युवक है ?
हाँ, अगर कोई कहता, ये "उत्साही बुजुर्ग है" कि हाँ. अगर कोई करता. या
विसर्जन का समय : बढापा । तो उत्साह उसकी शोभा होता, "उत्साही-युवक" बचपन का अर्जनकाल, यौवन का सर्जनकाल कर यह युवक का विशेषण नहीं, या युवा की पहचान पूर्ण होने के बाद, बुढ़ापे का विसर्जनकाल आता । नहीं, किन्तु यौवन का अपमान है, उसकी शक्तियों है। बचपन में जो शक्ति संचित की जातो है, वह की अवगणना है।
यौवन में व्यय होती है, और नव-सर्जन में काम
आती है, किन्तु अर्जन और सर्जन परिपूर्ण होने के यौवन में ही महान कार्य हुए हैं
बाद "विसर्जन" भी होना चाहिए। जगत से, ____संसार के महापुरुषों का इतिहास उठाकर प्रकृति से, समाज से और परिवार से जो कुछ प्राप्त / देखिए, जितने भी वीर, योद्धा, प्रतिभाशाली, देश- किया है, उसे, उसके लिए देना भी चाहिए । जो भक्त, धर्मनेता, राष्ट्रनेता, वैज्ञानिक, आवि- ज्ञान, अनुभव, नया चिन्तन और विविध प्रकार की | कारक, महापुरुष और अपने क्षेत्र की हस्तियाँ हुई जानकारियाँ आपको दीर्घकालीन श्रम के द्वारा, ||5) हैं, उन सबका अभ्युदय काल यौवन ही है । यौवन साधना के द्वारा प्राप्त हुई हैं, उनको समाज के
की रससिक्त ऋतु ने ही उनके जीवन वृक्ष पर सफ- लिए, मानवता के कल्याण हेतु विसर्जन करना भी - लता के फल खिलाये हैं । भगवान् महावीर ३० वर्ष आपका कर्तव्य है । जो धन-समृद्धि, वैभव आपको, न की भरी जवानी में साधना-पथ पर चरण बढ़ाते हैं, अपनी सूझ-बूझ, परिश्रमशीलता और भाग्य द्वारा
और यौवन के १२ वर्ष तपस्या, साधना, ध्यान उपलब्ध हुआ है, उन उपलब्धियों को चाहे, वे आदि में बिताकर तीर्थंकर बनते हैं। गौतम बुद्ध भौतिक हैं, या आध्यात्मिक हैं, मानवता के हित
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम १८. साध्वीरत्न कुसमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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