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जनदर्शन में आत्माएँ अनन्तानन्त हैं तथा परि- जब व्यक्ति सभी जीवों को समभाव से देखता | मा णामी स्वरूप हैं किन्तु चेतना स्वरूप होने के कारण है तो राग-द्वंष का विनाश हो जाता है । उसका - एक जीवात्मा अपने रूप में रहते हए भी ज्ञान के चित्त धार्मिक बनता है। रागद्वेष-हीनता धार्मिक अनन्त पर्यायों का ग्रहण कर सकती है।
बनने की प्रथम सीढ़ी है।। __स्वरूप की दृष्टि से सभी आत्माएँ समान हैं।
समभाव एवं आत्मतुल्यता की दृष्टि का विकास जीव के सहज गुण अपने मूल रूप में स्थित रहते
होने पर व्यक्ति अहिंसक अपने आप हो जाता है। हैं । पुरुषार्थ के परिणामस्वरूप शुद्धि-अशुद्धि की
इसका कारण यह है कि प्राणी मात्र जीवित रहने पर मात्रा घटती-बढ़ती रहती है।
की कामना करने वाले हैं। सबको अपना जीवन
प्रिय है। सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई आत्म-तुल्यता तथा सामाजिक समता-भगवान राम
नहीं चाहता। जब सभी प्राणियों को दुःख अप्रिय
minsों ने समस्त जीवों पर मैत्रीभाव रखने एवं समस्त है तो किसी भी प्राणी को दुःख न पहुँचाना ही संसार को समभाव में देखने का निर्देश दिया। अहिंसा है। अहिंसा केवल निवत्तिपरक साधना 'श्रमण' की व्याख्या करते हुए उसकी सार्थकता नहीं है, यह व्यक्ति को सही रूप में सामाजिक बनाने समस्त प्राणियों के प्रति समदृष्टि रखने में बत- को
। लायी। समभाव की साधना व्यक्ति को श्रमण बनाती है।
अहिंसा के साथ व्यक्ति की मानसिकता का भगवान ने कहा कि जाति की कोई विशेषता
सम्बन्ध है। इस कारण महावीर ने कहा कि नहीं, जाति और कूल से त्राण नहीं होता। प्राणी अप्रमत्त आत्मा अहिंसक है। एक कृषक अपनी मात्र आत्मतुल्य है। से इस कारण प्राणियों के प्रति क्रिया करते हुए यदि अनजाने जीवहिंसा कर भी आत्मतुल्य भाव रखो; आत्मतुल्य समझो, सबके देता है तो भी हिंसा की भावना उसके साथ जुड़ती प्रति मैत्रीभाव रखो, समस्त संसार को समभाव नहीं है । भले ही हम किसी का वध न करें, किन्तु से देखो । समभाव के महत्व का प्रतिपादन उन्होंने किसी के वध करने के विचार का सम्बन्ध मानयह कहकर किया कि आर्य महापुरुषों ने इसे ही सिकता से सम्पृक्त हो जाता है। धर्म कहा है।
___ इसी कारण कहा गया है कि रागद्वेष का ___अहिंसा : जीवन का विधानात्मक मूल्य एवं भाव अप्रादुर्भाव अहिंसा एवं उसका प्रादुर्भाव दृष्टि-भगवान् महावीर ने अहिंसा शब्द का व्यापक हिंसा है। अर्थ में प्रयोग किया- मन, वचन, कर्म से किसी
हिंसा से पाशविकता का जन्म होता है, को पीड़ा न देना। यहाँ आकर अहिंसा जीवन का
अहिंसा से मानवीयता एवं सामाजिकता का। विधानात्मक मूल्य बन गया।
दुसरों का अनिष्ट करने की नहीं, अपने कल्याण के ___महावीर ने अहिंसा के प्रतिपादन द्वारा व्यक्ति साथ-साथ दूसरों का भी कल्याण करने की के चित्त को बहुत गहरे से प्रभावित किया। उन्होंने प्रवृत्ति ने मनुष्य को सामाजिक एवं मानवीय संसार में प्राणियों के प्रति आत्मतुल्यता-भाव की बनाया है। प्रकृति से वह आदमी है, नैतिकताजागृति का उपदेश दिया, शत्र एवं मित्र सभी बोध के संस्कारों ने उसमें मानवीय भावना का प्राणियों पर समभाव की दृष्टि रखने का शंखनाद विकास कर उसके जीवन को सार्थकता प्रदान किया।
की है।
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तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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