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त्रिविधता
वाला हो और आत्मध्यानी हो। 'मध्यम-अन्तयद्यपि, द्रव्याथिक नय की अपेक्षा से आत्मा
रात्मा' वे जीव हैं, जो देशव्रतों के धारक गृहस्थ हैं, | एक है, किन्तु परिणामात्मक पर्यायाथिक-नय की अथवा षष्ठ-गुण-स्थानवर्ती निर्ग्रन्थ-साधु हैं । जबकि (0 अपेक्षा से वह 'बहिरात्मा', 'अन्तरात्मा' और 'पर- चतुर्थगुणस्थानवर्ती, व्रतरहित, सम्यग्दृष्टि जीव SAR मात्मा' भेदों से तीन प्रकार का हो जाता है।34 'जघन्य अन्तरात्मा' कहलाते हैं । तीनों ही अन्तरात्मा
संसारी-जीव, शरीर-आदि पर-द्रव्यों में जब अन्तर्दृष्टि वाले और मोक्षमार्ग के साधक होते हैं । तक 'आत्मबुद्धि' बनाये रखता है, अथवा मिथ्यात्व 'परमात्मा' के भी दो प्रकार हैं-'सकल परदशा में अवस्थित रहता है, तभी तक उसे 'बहि- मात्मा' और 'विकल परमात्मा'। घाति-कर्मों के रात्मा' कहा जाता है । किन्तु, जब शरीर आदि विनाशक, सम्पूर्ण पदार्थों के वेत्ता 'अर्हन्त' को सकल 30 में से उसकी आत्मबुद्धि और मिथ्यात्व भी दूर हो परमात्मा' शब्द से अभिहित किया जाता है । जबकि TO जाता है, तब वह 'सम्यग्दृष्टि' बन जाता है। और घाति-अघाति-समस्त कर्मों से रहित,अशरीरी, 'सिद्ध उसे 'अन्तरात्मा' कहा जाने लगता है।
परमेष्ठी' के लिए "विकल-परमात्मा' शब्द का प्रयोग यह अन्तरात्मा भी उत्तम, मध्यम एवं जघन्य किया जाता है । सांसारिक जीव/आत्मा, इसी भेदों से तीन प्रकार का होता है। 'उत्तम-अन्त- स्थिति में पहुँच कर अपने उच्चतम/उन्नत-स्वरूप रात्मा' वह आत्मा होता है, जो समस्त परिग्रहों को प्राप्त करता है। जैनदर्शनसम्मत आत्मा के का त्याग कर चुका हो, निस्पृह हो, शुद्धोपयोग स्वरूप का यही संक्षिप्त-विवेचन है।
- टिप्पण-सन्दर्भ १. साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
२०. प्रवचनसार-२/३० २. वृहद्रव्यसंग्रह-५७
२१. समयसार-१०२ ३. पञ्चास्तिकाय-३०
२२. वही-१०३ ४. वृहद्व्य संग्रह-३
२३. प्रवचनसार-२/७५ ५. तत्वार्थ राजवार्तिक-१/४/७
२४. वही-२/७६ ६. बृहद्रव्यसंग्रह-६
२५. वृहदद्रव्यसंग्रह-१० ७. अध्यात्मकमलमार्तण्ड-३/४
२६. गोम्मटसार-जीवकाण्ड-६६८ ८ वही-३/७-८
२७. प्रवचनसार-२/४४ ६. तत्त्वार्थसूत्र-१/६
२८. पञ्चास्तिकाय-३४ १०. तत्त्वार्थसत्र-१/३
२६. वही-५३ ११. वही-१/५
३०. वही-५४ १२. अध्यात्मकमलमार्तण्ड-३/६
३१. अध्यात्मकमलमार्तण्ड-३/8 १३. द्रव्यसंग्रह-७
३२. वही-३/११ १४. प्रवचनसार-२/८०
३३. वही-३/१० १५. वही-२/८२
३४. मोक्षप्राभृत-४ १६. प्रवचनसार-२/८३
३५. अध्यात्मकमलमार्तण्ड-३/१२ १७. वही-२/८४
३६. वही १८. अध्यात्मकमलमार्तण्ड-३/१३
३७. समाधितंत्र-५ १६. वृहद्रव्यसंग्रह-८ तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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