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के युवकों ने अपना संगठन बनाया और समाज में जो म० सा० की जन्मभूमि के स्थानक भवन के सक्रिय सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
प्रवचन हाल का नाम वहाँ के श्रावक संघ को इनके अतिरिक्त एक उल्लेखनीय कार्य यह प्रेरणा प्रदान कर महान साधिका श्री सोहनकुवर किया कि तिरपाल तहसील गोगुन्दा जिला उदयपुर जी म० सा० के नाम से महासती श्री सोहनकुंवर आपकी सद्गुरुवर्या श्री महासती श्री सोहनकुवर प्रवचन हाल रखा।
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विशिष्ट व्यक्तित्वों से सम्पर्क बाल ब्रह्मचारिणी, महाविदुषी, प्रवचनभूषण आगम व्याख्याकार आचार्यश्री घासीलाल जी महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा० का सुदीर्घ म०-- उदयपुर में जिस समय महासती श्री कुसुमसंयमकाल में अनेक विशिष्ट व्यक्तियों से सम्पर्क वती जी म. एवं महासती श्री पुष्पवती जी म. हुआ है । उनमें से कुछ का संक्षिप्त विवरण इस अपनी सद्गुरुवर्या के सान्निध्य में अध्ययनरत थीं, CG प्रकार है
उस समय पू. आचार्यश्री घासीलाल जी म. उदय१. उपाचार्य श्री गणेशीलाल जी म. सा०- पुर में ही विराजमान थे। यदा-कदा आप अपनी पूजनीया महासती श्री कुसूमवती जी म. सा० सदगुरुवर्या के साथ उनके दर्शन करने जाया करती अपने गुरुणी जी म. सा. के साथ उपाचार्य श्री थीं। पं. थी घासीलालजी म. सा. व्याकरण संबंधी गणेशीलाल जी म. सा. के अनेक बार दर्शन करने तथा अन्य भी अनेक प्रकार के प्रश्न पूछते थे। एवं प्रवचन सुनने पधारा करते थे। आप कई बार जिनका आप सटीक उत्तर देती थीं। आपकी अध्यअपनी जिज्ञासा उनके समक्ष प्रस्तुत करती थीं यन के प्रति रुचि और सरल व्यवहार से वे बहतमा और उसका समुचित समाधान भी पाती थीं। आप
प्रभावित थे। महासती श्री चारित्रप्रभाजी म. को उनसे ज्ञान-ध्यान विषयक चर्चा प्रायः करती रहती
आपके पास दीक्षा लेने की प्रेरणा भी आचार्यश्री 3 थीं। लघुवय में आपकी ज्ञान-पिपासा से उपाचार्य घासीलालजी म. सा. ने ही दो। श्री जी अत्यन्त प्रभावित हुए । अत्यन्त प्रभावित हुए।
पंजाबकेसरी श्री प्रेमचन्दजी म० सा०-संवत् २. आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषिजी म.सा.- २०१३ में महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. का महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. अपने अध्ययन- वर्षावास ब्यावर था और उसी वर्ष पंजाबकेसरी काल में ब्यावर स्थित गुरुकुल में अध्ययनरत जी का वर्षावास भी ब्यावर में ही था। पंजाबथीं। उस समय आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषि केसरीजी महाराज के गुरु श्री वृद्धिचन्दजी म. सा. जी महाराज का ब्यावर में वर्षावास था। आप उदयपुर जिले के बगडुन्दा गांव के थे। उन्होंने
: उनके दर्शन करने, प्रवचन श्रवण का लाभ अमर सम्प्रदाय में दीक्षा ली थी। फिर विचरण प्राप्त करने तथा ज्ञान चर्चा करने के लिए जाया करते हुए पंजाब पधार गये थे। अतः उधर ही करती थीं।
विचरते रहे । इसी कारण श्री प्रेमचन्द जी म. राजस्थान के ग्राम नगरों में विचरण करते महासती जी को 'ताऊजी की चेलियाँ' बोलते हुए एक बार भीलवाड़ा में आपने आचार्यश्री के थे। क्योंकि श्री ताराचन्दजो म. सा. एवं श्री वृद्धिदर्शन किए। उस समय आपकी सरलता, वैदुष्य, चन्द जी म. सा. गुरुभाई थे । महासतीजी ने अनेक ) प्रवचन पटुता एवं ज्ञानाभ्यास की आचार्यश्री ने भी प्रवचन सुने । कई बार दिन में ज्ञान चर्चा भी प्रशंसा की।
होती थी।
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ