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| गई हैं। चलिये, मैं आपको पास के गाँव का रास्ता नहीं दिया । सब कोठी में ठहरे हुए थे और रात बता देता हूँ।"
भर चारों ओर से शेरों की उस व्यक्ति के मिलने से एवं उसके उपर्युक्त थीं । कभी-कभी तो दहाड़ इतने निकट से सुनाई (OX कथन से सभी ने राहत की सांस ली। उस व्यक्ति पड़ती मानो वह कोठी के आसपास ही हो । तपESE ने बहुत देर तक साथ-साथ चलकर गाँव की ओर संयम के प्रभाव से सभी सुरक्षित थे। उधर प्रातः
संकेत कर वहाँ पहुँचने का रास्ता भी बता दिया। होते-होते पू० महासती जी पैर का दर्द गायब हो दस जाते हए उसने कहा-“यह सीधा रास्ता उस गाँव गया। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो रात्रि में । SIf तक जाता है । आप सीधे ही पधार जाना।" पैर में दर्द था ही नहीं। इससे सभी ने चैन की 2
सांस ली। सभी ने यही सोचा कि यदि पैर-दर्द उस व्यक्ति को धन्यवाद देकर आप अपनी ERA शिष्याओं के साथ उस गाँव की ओर बताए रास्ते
ठीक नहीं हुआ होता तो इस जंगल में क्या
करते ? (E) से आगे बढ़ चलीं। कुछ ही दूरी तक चली होंगी
कि साथ वाली एक साध्वीजी ने पीछे मुड़कर देखा हा तो वह व्यक्ति कहीं भी दिखाई नहीं दिया। उन
वे चुपचाप चले गए साध्वी जी ने कहा-'देखो, वह रास्ता बताने वाला व्यक्ति कह दिखाई नहीं दे रहा है। इतनी जल्दी एक बार जोधपुर से पाली की ओर पधार रहे
वह कहाँ चला गया?" सबने पीछे मडकर देखा तो थे। किसी अपरिहार्य कारणवश गांव तक नहीं मा दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था। आखिर पहुँच पाये और सूर्यास्त हो गया । ऐसी स्थिति में
वह था कौन ? तभी सभी के हृदय में भाव उत्पन्न जंगल में बने एक तबारे में ठहरना पड़ा। उस
हुए कि आज किसी अदृश्य शक्ति ने हमारी सहा- तबारे के समीप एक कुआ भी था। रात्रि प्रतिद यता की है।
क्रमण के पश्चात् सभी चुपचाप बैठे हुए जाप कर
'] रहे थे । जाप करते-करते काफी समय व्यतीत हो पैरों का दर्द गायब
गया। कुछ साध्वियाँ सो गईं, कुछ सोने का विचार
कर रही थीं। आप अभी भी बैठी समता भाव में ___एक बार आप अपने माताजी महाराज एवं रमण करते हुए अपने आराध्य का जाप कर रही
पूज्य महासती श्री सौभाग्यकुवर जी महाराज के थीं। तभी बाहर कुछ आहट हुई और रोशनी भी। 5 साथ प्रथम बार दिल्ली पधारे। दिल्ली से पुनः एक बार तो सभी भयभीत हो उठीं। आप निर्भय । लौटते समय अलवर से जयपुर के रास्ते में होकर शान्त मुद्रा में बैठी रहीं । प्रकाश तबारे के पूजनीया महासती श्री सौभाग्यकुंवरजी महाराज अन्दर भी आया । शायद उन लोगों के पास टार्च सा. से पैर में असह्य दर्द होने लगा। यहाँ भयंकर थी। उनमें से किसी एक ने पूछा- "कौन है जंगल है, जो सुप्रसिद्ध वन्य पशु अभयारण्य अन्दर ! बाहर निकलो और जो कुछ भी पास में 'सिरस्का' के नाम से विख्यात है। यहाँ है हमारे हवाले कर दो।" एक सरकारी कोठी बनी हुई है, उसी में ठहरना आपने निडर होकर कहा-"हम जैन साध्वियाँ पड़ा। पू० महासती श्री सौभाग्यकुंवर जी महाराज हैं। हमारे पास केवल आशीर्वाद है । चाहो तो ले के पैर दर्द के विषय में आपने कहा कि यह दर्द लो।" इसके साथ ही आपने 'दया पालो' भी कहा। | कल प्रातः होते-होते ठीक हो जायेगा। उस समय बाहर कुछ देर मौन रहा। फिर आवाज सुनाई आपकी इस बात पर किसी ने कोई विशेष ध्यान दी-“ऐसा कैसे हो सकता है ? कुछ तो होगा ही।
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ NoG Jain Education International
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