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करने में सदा संलग्न हैं। उनके जीवन का रोम- आपके दर्शन किये और इतना प्रभावित हुआ || रोम आत्मोत्थान और समाजोत्थान में लगा हुआ कि अब तो आप जहाँ कहीं विराजते हों, प्रति वर्ष है। उनके इस महनीय प्रयास में हमारे क्षेत्र की दर्शन करता है। महिलाओं ने रोने-धोने की कुप्रथाओं को अत्यल्प आप में एक नहीं अनेक विशेषताएँ हैं, जिन्हें मैं करने के प्रत्याख्यान लिए।
अंकित करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा हूँ। ऐसे महिमामय साध्वीरत्न श्री के पावन आप में सरलता कूट-कूट कर भरी है। आपके चरणों में श्रद्धा से नत हो, मंगल कामना करता हूँ पास चाहे कोई छोटा बच्चा आये या बड़ा व्यक्ति, कि हमें आपका वरद हस्त सदा मिलता रहे। ० चाहे निर्धन आये या धनी, सबके साथ समान व्यव
। पवनकुमार जैन, काँधला हार हमने देखा है। आपका अन्तर्ह दय ममतासन् १९८० का वर्ष मेरे लिए स्वर्णिम था, जब मयी मां के सदृश है । आपके पावन सान्निध्य को ए एक महान् आत्मा के दर्शन का लाभ मिला । मैं पाकर असीम शान्ति का अनुभव होता है, असीम
साधु सन्तों के दर्शन करने कम ही जाता था। मूड वत्सलता का अनुभव होता है । इस वात्सल्य की ही नहीं बनता था।
धारा में अवगाहन कर अपने आपको धन्य सन् १९८० में जम्मू चातुर्मास कर पंजाब आदि मानते हैं। प्रान्तों में विचरते हुए महासती कुसुमवती जी म० आप क्षमा की महादेवी हैं । मैंने आपको निकट कांधला पधारे । कांधला उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले से ही नहीं अति निकट से देखा है । आपका जीवन का छोटा-सा गाँव है जिसे पूज्य काशीराम जी म० कितना शान्त प्रशान्त है । उफान और तूफान का जैसे महान सन्त सतियों की दीक्षा-स्थली बनने का जबाव भी मृदु मुस्कान से देती है । आपके जीवन सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यहां के लोगों में धर्म की में अद्भुत सहनशीलता है। भावना अधिक है।
आप उच्चकोटि की ज्ञान साधिका हैं । आप के महासती जी के पदार्पण से अच्छी रौनक लग ज्ञान का पार पाना बड़ा मुश्किल है । आप ज्ञान के गई । आपके पास दो विरक्ता बहनें थी-एक मेरठ सूर्य हैं, संस्कृत प्राकृत के श्लोक गाथाएँ रटी पड़ी की गीता जी और एक जम्मू की शान्ता जी। संघ हैं। किसी विषय को समझाने के लिए उसके तलछट ने विनति की कि इन दोनों वैरागिनों की दीक्षा तक पहुँच जाती हैं । जहाँ आप में ज्ञान की गहराई यहीं कराई जाये । भाव पूर्ण आग्रह को देखकर है वहीं आप में चारित्र की भी ऊँचाई है। आप अपनी आपने हमारे संघ की विनति स्वीकार की। संयम साधना के प्रति सजग हैं । आप हमारे उत्तर
बडे ठाठ-बाट से दोनों विरक्ताओं को दीक्षा दी भारत में विचरने पधारे। जगह-जगह आपके गई थी, विशाल जलूस था-जिसमें बाजे, हाथी सामने कई समस्याएं आई-माईक में बोलना, || घोडे, रथ, पदाति एवं संवाद करती हई झाँकियाँ पंखे के नीचे बैठना. फ्लश आदि का उपयोग करना थी। गाँव के जैन अजैन यहाँ तक कि मुस्लिम आदि । आपने कई संकटों का सामना किया पर लोगों ने भी-बच्चे-बच्चे ने भाग लिया। लेकिन कभी भी इन सबका उपयोग नहीं किया। दुर्भाग्य से मैं आपसे परिचित नहीं हो सका।
आप में एक नहीं अनेक गुण हैं। मैं अपनी स्वल्प आप हमारे कांधला से विहार कर मेरठ बड़ौत मति से कहाँ तक वर्णन करू । दीक्षा स्वर्ण जयन्ती होते हुए देहली पधारे। देहली हम अपने व्यापार के पावन प्रसंग पर अपनी आस्था की केन्द्र गुरुणी से जाते रहते थे। चूकि हमारे बड़े भाईसा आपके जो म० के श्री चरणों में सादर श्रद्धार्पित करते हुए पास बहत आते-जाते थे अतः उनके साथ-साथ मैं यही मंगल मनीषा करता हैभी आपके प्रास स्थानक में पहुँचा।
आप जीयें हजारों साल, साल के दिन हों ५० हजार
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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